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६४ मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजतुं जीवन चरित्र.
बीजापुरमां चतुर्मास.
बीजापुरना श्री संघना अग्रेसरो धारवाड - प्रतिष्ठा महोत्सव वखते आव्या हता, तेमणे मुनिवर्यनो प्रभाव, शांत मुद्रा, शुद्ध संयम अने विद्वत्ता ए बधुंय नजरे जोयुं तथा अनुभवयुं हतुं. आवा सुपात्र मुनिराजोना ऋण ठाणा पोताना शरमां पधारेला होवाथी श्री संघने अनहद आनंद थयो, अने श्री संघे एकठा थइ चतुर्मास माटे आग्रह -भरी विनति करी. हवे चतुर्मासना दिवसो नजीकमां ज हता, श्रावक भाईओ तथा श्राविका बहेनोनी धर्म तरफनी अद्वितीय श्रद्धा जोड, आवा भाविक अने उत्साही श्री संघने चतुर्मासमां विशेष लाभ थशे, एम विचारी ज्ञानी महात्मा श्रीए चतुर्मास माटे संमति आपी. जेथी मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजकी जय ए प्रमाणे जयोद्घोषणा वच्चे बीजापुरना भाविक श्रावको मुनिवर्यनो उपकार मान्यो.
संवेगरंगी यतिजीनुं बीजापुरमां आगमन.
धारवाडना प्रतिष्ठा - महोत्सव प्रसंगे यति वर्ग ठीक-ठीक संख्यामां जमा थयो हतो ए हकीकत अगाडी जणावी गया छीए. आ समये डीसा केम्पना यतिजी भक्तिविजयजीना शिष्य यतिजी श्री केसरविजयजी पण पधार्या हता. आ महोत्सव प्रसंगे वे भाग्यशालीओने उपजेलो वैराग्य, तेमनी अस्खलित शुभ