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________________ १४ मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजनुं जीवन चरित्र. १९८३ मां पंडितजीना सुशील पत्नी सौभाग्यवंता. बाई अजवाळीने जीर्ण ज्वरनो भयंकर रोग लागु पडयो. मुंबईना काबेल डॉक्टरोनी घणी दवा करी, परंतु ' टूटी तेनी बूटी नहिं ' ए कहेवत मुजब कोइ पण दवा अनुकूल न पडी. आखरे ए जीवलेण दरदथी सौ० व्हेन अजवाळी संवत् १९८३ ना जेठ वदि ३ शनिवारना रोज पंचत्व पाम्या. ___ आवा सुशील, समजु अने प्रेमाळ पत्नीना परलोक गमनथी पंडितजीना हृदयने सख्त आघात लाग्यो. पुत्रने हजु चार वर्ष पूरां थयां नहोतां, तेवामां तेने पोतानी वहाली मातानो वियोग थयो ! शोकग्रस्त हृदये पंडितजी पोताना नानकडा बाळकने लइ देशमां आव्या. __पंडितजी- चित्त हवे वैराग्य तरफ वळ्युं. आ असार संसारमा कडवा-मीठा अनेक प्रसंगो अनुभवाई चूक्या हता, तेथी तेमणे फरी वखत संसार-व्यवहारमा न जोडावानो पोतानो विचार निखालस हृदये मातुश्री अने बंधुओने जणाव्यो. परंतु मातुश्री अने बंधुओए कह्यु के-" भाई ! तमारी उम्मर हजु मोटी न गणाय, वळी दिकरो बहु न्हानो छे, माटे बीजी वखत लग्न करो तो दिकरो मोटो थइ जाय; अने तमारो संसार-व्यवहार कोइनी पराधीनता वगर चालु रहे." पोतानी अनिच्छा छतां पंडितजी वडिलोने काइ विशेष न कही शक्या, अने पालीताणा ताबेना परवडी गामना कामदार शा रणछोड केशवजीनी पुत्री कंचन साथे
SR No.002455
Book TitleSubhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavvijay
PublisherBhupatrai Jadavji Shah
Publication Year1935
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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