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श्री गौतम स्वामीनो रास.
पुर पुर वसतां कांई करीजे, देश देशांतर काई ममीजें,
कवण काज आयास करो। प्रह ऊठी गोयम समरीजे, काज समग्गल ततखिण सीझे,
नव निधि विलसे तिहां घरे ए ॥४४॥ चउदह सय बारोत्तर वरसे, गोयम गणहर केवल दिवसे
कीयो कवित्त उपगार परो। आदहिं मंगल ए पभणीजे, परव महोच्छव पहिलो दीजे,
ऋद्धि वृद्धि कल्याण करो ॥ ४५ ॥ धन्य माता जिणे उयरे धरिया,धन्य पिता जिण कुल अवतरिया
धन्य सुगुरु जिणे दिक्खिया ए । विनयवंत विद्या भंडार, तसु गुण पुहवी न लम्भे पार,
. वड जिम शाखा विस्तरो ए। गोयम स्वामीनो रास भणीजे, चउविह संघ रलियायत कीजें,
__ ऋद्धि वृद्धि कल्याण करो ॥ ४६ ।। कुंकुम चंदन छडो दिवरावो, माणक मोतीना चोक पूरावो,
- रयण सिंहासण बेसणो ए। तिहां बेसी गुरु देशना देसी, भविक जीवनां काज सरेसी,
. नित नित मंगल उदय करो ॥ ४७ ।। . ॥ इति श्रीगौतमस्वामीनो रास संपूर्ण ॥