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श्री गौतमस्वामीनो रास. हुं किम ए वीर जिणंद, भगतिहिं भोलो मोलण्यो ।
आपणो ए अविहड नेह, नाह न संपे साचव्यो ए ॥ साचो ए वीतराग, नेह न जेणे लालियो ए । तिण समे ए गोयम चित्त, राग वैरागें वालियो ए ॥३॥
आवतो ए जो उल्लट्ट, रहितो रागे साहियो ए। केवल ए नाण उप्पन, गोयम सहिज उमाहियो ए ॥ तिहुअण ए जय जयकार, केवल महिमा सुर करे ए। गणधरु ए करय वखाण, भवियण भव इम निस्तरे ए ॥३६॥
वस्तु छन्द. पढम गणहर पढम गणहर, वरस पच्चास ॥ गिहवासें संवसिय, तीस वरस संजम विभूसिय । सिरि केवलनाण पुण, बार वरस तिहुअण नमंसिय ॥ राजगृही नयरी ठग्यो, बाणवइ वरसाओ । सामी गोयम गुणनिलो, होसे सिवपुर ठाओ ॥ ३७॥
भाषा.
जिम सहकारे कोयल टहुके, जिम कुसुमत्रने परिमल महके,
जिम चंदन सुगंध निधि ॥ जिम गंगाजल लहिरयां लहके, जिम कणयाचल तेजें झलके,
तिम गोयम सोभाग निधि ॥ ३८॥ जिम मान सरोवर निवसे हंसा, जिम सुरवर सिरि करणय वतंसा,
जिम महुयर राजीव वने ॥