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श्री सप्त स्मरणादि नित्यस्मरण ।
इण अनुक्रमे गणधर रयण, थाप्या वीर अग्यार तो । तो उपदेशे भुवन गुरु, संयमशुं व्रत बार तो ॥ बिहुं उपवासें पार ए, आपण विहरंत तो । गोयम संयम जग सयल, जय जयकार करत तो ||२१||
वस्तु छन्द.
इंदभूह इंदभूह, चढिश्रो बहु मान || हुंकारो करी कंपतो, समवसरण पहुतो तुरंत । जे संसासामि सवे, चरम नाह फेडे फुरंत || बोधि बीज सज्झाय मर्ने, गोयम भवह विरत्त । दिक्ख लेई सिक्खा सहिय, गणहर पय संपत्त ।। २२ ।।
भाषा,
श्राज हुआ सुविहाण, आज पचेलिमा पुण्य भरो । दीठा गोयम सामि, जो निय नयरों अमिय झरो ॥ सिरि गोयम गणहार, पंच सया मुनि परिवरिय । भूमिय करीय विहार, भवियण जन पडिबोह करे || समवसरण मझार, जे जे संसा उपजे ए । ते ते पर उपगार, कारण पूछे मुनि पवरो || २३ | जीहां जीहां दीजे दक्खि, तीहां तीहां केवल उपजे ए । आप कनें हुत, गोयम दीजें दान इस ॥
-गुरु उपर गुरुभक्ति, सामी गोयम ऊपनिय । इ छल केवलनाण, रागज राखे रंग भरे ॥ २४ ॥