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श्री गोडी पार्श्वजिन वृद्ध स्तवन ।
निरधननइं घरि धननो सूत, आपै अपुत्रीयाने पुत्र । कायरने सूरापण धरै, पार उतारे लच्छी वरै ॥ ४३ ॥ दौर्भागीने दै सौभाग, पग विहूणाने आपै पग । ठाम नहीं तेहने चै ठाम, मन वंछित पूरै अभिराम ॥४४॥ निराधारने चै आधार, भवसायर ऊतारै पार । भारतीयानी आरत भंग, धरै ध्यान ते लहै सुरंग ॥४॥ समयों सहाय दीयै यक्षराज, तेहना मोटा अछे दिवाज । बुद्धि होणने बुद्धि प्रकाश, गूंगाने वचन विलास ॥४६॥ दुखियाने सुखनो दातार, भय भंजण रंजण अवतार । बंधन तूटै बेडी तणा, श्रीपार्श्व नाम अक्षर समरणा ॥४७॥
दुहा.
श्रीपार्श्व नाम अक्षर जपै, विश्वानर विकराल । हस्तियूथ दूरे टलै, दुद्धर सिंह सियाल ॥४८॥ चोर तणा भय चूकवै, विष अमृत उडकार । विषधरनो विष ऊतरै, संग्रामे जय जयकार ॥ ४९ ॥ रोग सोग दालिद्र दुःख, दोहग दूर पलाय । परमेसर श्री पासनो, महिमा मन्त्र जपाय ॥ ५० ॥
कडखानी चाल. उंजितु उंजितु उंज उपसम धरी, ॐ ही श्री श्रीपार्श्व भचर जपते । भूत ने प्रेत झोटिंग व्यंतर सुरा, उपसमै वार इकवीस गुणते । उंजितु.॥५१॥