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________________ श्री सप्त स्मरणादि नित्यस्मरण. सुपन माहे मान्यो ते वेण, हेम वरण देखाड्यो नेण । गोठी मनह मनोरथ हुआ, सिलावटैने गया तेडवा ॥३३।। सिलावटो आवै सूरमो, जीमें खीर खांड घृत चूरमो । घडै घाट करै कोरणी, लगन भलै पाया रोपणी ॥ ३४ ॥ थंभ थंभ कीधी पूतली, नाटक कौतिक करती रली । रंग मंडप रलियामणो रचै, जोतां मानवनो मन वसे ॥३॥ नीपायो पूरो प्रासाद, स्वर्ग समो मंडे आवास । दिवस विचारी इंडोघड्यो, ततखिण देवल उपर चड्यो।।३६॥ शुभ लगन शुभ वेलावास, पव्वासण बैठा श्री पास । महिमा मोटी मेरु समान, एकल मिल वगडे रहै वान ॥३७॥ वात पुराणी में सांभली, स्तवन मांहि सूधी सोकली। गोठी तणा गोतरीया अछ, यात्रा करीने परने पछै ॥३८॥ दुहा. विधन विडारन यक्ष जगि, तेहनो अकल सरूप । प्रीत करै श्री संघने, देखाडै निज रूप ॥ ३९ ॥ गिरुओ गोडी पास जिन, आपै अरथ भंडार । सांनिध करै श्रीसंघने, आशा पूरणहार ।। ४० ॥ नील पला? नील हय, नीलो थइ असवार । मारग चूका मानवी, बाट दिखावण हार ॥४१॥ ढाल. वरण अढार तणो लहै भोग, विधन निवारै टालै रोग । पवित्र थइ समरै जे जाप, टाले सघला पाप संताए ।॥४२॥
SR No.002455
Book TitleSubhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavvijay
PublisherBhupatrai Jadavji Shah
Publication Year1935
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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