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श्री बृहद्-अजितशांति स्मरणम्.
प्राहि ॥ २६ ॥ दीवयं ।। पीण निरंतर थणभरविणमिय गायलयाहिं, मणिकंचण पसिढिलमेहल सोहिअ सोणितडाहिं ।। वरखिंखिणिनेउर सतिलय वलय विभूसणियाहिं, रहकर चउर मणोहर सुंदर दंसणियाहिं ॥२७॥ चित्तक्खरा ॥ देवसुंदरीहिं पाय बंदिअाहिं वंदिआ य जस्स ते सुविकमा कमा, अप्पणो निडालएहिं मंडणोडणप्पगारएहि केहि केहि वि । अवंगतिलय पत्तलेह नामएहिं चिल्लएहिं संगयं गयाहिं, भत्ति सन्निविड वंदणागयाहिं हुंति ते वंदिया पुणो पुणो ॥ २८ ॥ नारायओ ॥ तमहं जिणचंद, अजिअं जिनमोहं ।। धुअसव्वकिले सं, पयो पणमामि ॥२९॥ नंदिअयं ।। थुअवंदिस्सारिसिगण देवगणेहिं, तो देववहूहिं पयो पणमियस्सा ॥ जस्स जगुत्तमसासणयस्सा, भत्तिवसागयपिंडिअयाहिं ॥ देव वरच्छरसा बहुअाहिं, सुरवररइगुण पंडिअयाहिं ।। ३० ॥ भासुरयं ।। वंस सद्द तंति ताल मेलिए तिउक्खराभिराम सद्दमीसए कए अ, सुइसमाणणे सुद्ध सज गीअ पाय जालघंटिहिं ॥ वलय मेहलाकलाव नेउराभिराम सद्द मीसए कए य, देवनट्टिाहिं हाव भाव विन्भमप्पगारएहिं नच्चिऊणभंग हारएहिं वंदिप्राय जस्स ते सुविक्कमाकमा । तयं तिलोय सव्व सत्त संतिकारयं, पसंत सव्व पाव दोस मेसहं नमामि संतिमुत्तमं जिणं ।। ३१ ॥ नारायो। छत्त चामर पडागजून जव मंडिया, झयवर मगर तुरग सिरिवच्छ सुलंछणा।। दीव समुद्द मंदरदिसागयसोहिमा, सत्थिय वसह सीह रहचकवरंकिया ॥३२॥ ललि