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________________ (१९०) फूट नाशका मूल हे, फूट मत करो कोय । . फूट पडी नृप हिंदमें दीयो देशको खोय ॥१३५३ ॥ दमयंती नल नरवरे, राणी तजी निरधार ।। पांडव पांचाली तजी, ए जूवारी भाचार . ॥१३५४ ॥ जूवारी घर ऋघडी, माकड कंठे हार । घेली माथे बेडलो, रहे केटली बार ॥१३५५ ॥ राजाके घर रातिजो, भाभज विना न होय । जो सुवे साचे कहे, तो मेनाकी गत होय ॥ १३५६ ॥ पंडित भये मसालची, वातां करे बनाई। औरन को उजलो करे, आप अंधेरे जाई ॥ १३५७ ॥ रांड गुरु पैसा परमेश्वर, छोरा छोरी साध । तीरथ हमारे कोन करे, घरमें ही वैराग ॥१३५८ ॥ सासु तीरथ ससरा तीरथ, आधा तीरथ साली । मावाप को लातज मारु, सब तीरथ घरवाली ॥ १३५९ ॥ जे माणस जेणी परे, समजे धर्मनो सार । पंडित जन तेनी परे, समजावे निरधार ॥१३६० ॥ जिन प्रतिमा पूजी नहि, धर्यों जो मनमें द्वेष । सो नर मर कर कुता भया, झालर वेरा देख ॥ १३६१ ॥ कर मरोडे चुडीया तिडे, रे मूर्ख मणियार । अपने पियुके कर विना, कभी न करूं सीसकार ॥ १३६२ ॥
SR No.002455
Book TitleSubhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavvijay
PublisherBhupatrai Jadavji Shah
Publication Year1935
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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