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यच्चन्तितं तदिह दूरतरं प्रयाति, यच्चेतसाऽपि न कृतं तदिहाऽभ्युपैति । प्रातर्भवामि भुवनेश्वर चक्रवर्ती
सोsहं व्रजामि विपिने जटिले तपस्वी
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घर घर बाजा न बजे, कहत पुकार पुकार प्रभु विसारे पसु भये, पडत चाम पर मार कृपण कोथली श्वान भग, दोनों एक समान | घालत ही सुख उपजे, नीकलत निकसे प्राण वसीकरण यह मंत्र है, तज दे वचन कठोर । तुलसी मीठे बोलसे, सुख उपजे चउ ओर ये गायन में बडे, तुं गायनमें परवीण । ये ग्राहक कडवीणके, तु ले बेठा कर वीण जबराईका पेंडा न्यारा, कोइ मत मानो रीस । सब देवता सीस पूजावे, लिंग पूजावे ईश
॥ १३३४॥
।। १३३५॥
॥१३३६॥
॥ १३३७॥
॥१३३८ ॥
॥१३३९॥
भंग वेची थी जा दीना, भूरखा वेचा था ता दिना । खबर पडेगी ता दीना, रंगरोट कटेगो जा दिना ॥ १३४० ॥ जिसका काम तिसको छाजे, ओर करे तो लाठी वाजे । कुकर ठोडे गद्धा पोकारे, लाठी लेह करी धोबी मारे || १३४१ ॥
मठो घोरी ठोठ गुरु, कूवे तो खारो नीर । गामको ठाकुर घरकी घरनी, पांचो दहे सरीर ॥१३४२॥