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भक्तामर-कथा।
सरीखे महात्माओंकी निन्दा की, उससे इसकी यह दशा हो गई। आप दयासागर हैं। इस बालिका पर क्षमा करके इसे बचाइए । आपका प्रेम जीव-मात्र पर समान है। इसलिए इसके अज्ञान पर ध्यान न देकर हमारे दुःखकी ओर देखिए। कोई ऐसा उपाय बतलाइए, जिससे इसे आराम हो जाय । क्योंकि महात्मा पुरुषोंका अभयदान संसारमें प्रसिद्ध है । ___ मुनिने कहा-राजन् ! जो जैसा कर्म करता है उसका वैसा फल उसे भोगना ही पड़ता है। उसे इन्द्र, नरेन्द्र, जिनदेव आदि कोई नहीं मेट सकते । पर हाँ, धर्मसेवनसे पाप नष्ट होकर पुण्य-बन्ध होता है । इसलिए धर्म ग्रहण करना जीवमात्रके लिए आवश्यक है। यह कह कर मुनिराजने उन्हें श्रावक-धर्मका उपदेश दिया। ___ मुनिराजके उपदेशको सुन कर राजा बहुत खुश हुए। उन्होंने स्वयं श्रावक-धर्म स्वीकार कर कामलतासे भी उसके ग्रहण करनेको कहा।
इसके बाद मुनिराजने “ उन्निद्रहेमनवपंकजपुंजकान्ती" इस श्लोकके मंत्र द्वारा जल मंत्र कर राजकुमारी पर छौंटा । उनके जल छींटनेके साथ ही कामलताकी सब व्याधि चली गई । वह पहलेकी भाँति निरोग हो गई। यह देख वह मुनिराजके पाँवोंमें गिर कर बार बार अपना अपराध क्षमा कराने लगी। सच है, जब मनुष्य अपने अपराधको अपराध समझता है तब उसे बड़ा पश्चात्ताप होने लगता है । यही हालत राजकुमारी कामलताकी हुई।
इसके बाद कामलता और उसकी सखियोंने शुद्ध सम्यग्दर्शन, जो कि संसारके दुःखोंका समूल नाश करनेवाला है, ग्रहण किया। जिनधर्मके ऐसे प्रभावको देख कर अन्य बहुतसे लोगोंने भी जिनधर्म स्वीकार किया । धर्मकी भी बहुत प्रभावना हुई।