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धनमित्र सेठकी कथा।
धनमित्रने बहुतसे कोठोंको लकड़ियोंसे भर दिए । प्रातःकाल जब उसने उन्हें देखा तब वे सब सोनेसे भरे मिले । धनमित्र यह देख कर बहुत आनन्दित हुआ। सच है, पुण्यवानोंके लिए धनका लाभ कुछ कठिन नहीं।
अब धनके प्रभावसे धनमित्र राजमान्य हो गया । लोग उसे कुबेर कहने लगे । वह सबमें प्रतिष्ठित गिना जाने लगा। जिस पर लक्ष्मीकी कृपा होती है उसे संसार-मान्य होनेमें कुछ देर नहीं लगती।
धनमित्रने धन पाकर उसका उपयोग भी अच्छे कामोंमें किया । उसने बड़े बड़े विशाल जिनमन्दिर बनवाए, उनकी प्रतिष्ठा करवाई, विद्यालय खोले, अपने गरीब भाइयोंकी आशाएँ पूरी की, खूब दान दिया और साथ ही अपना नाम अमर किया।
को विस्मयोऽत्र यदि नाम गुणैरशेषै___ स्त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश । दोषैरुपात्तविविधाश्रयजातगर्वैः . स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि ।। २७ ॥
- हिन्दी-पद्यानुवाद। आश्चर्य क्या गुण सभी तुझमें समाए,
अन्यत्र क्योंकि न मिली उनको जगा ही। देखा न नाथ ! मुख भी तव स्वप्नमें भी,
पा आसरा जगत्का सब दोषने तो॥ मुनीश ! यदि सम्पूर्ण गुणोंने आपका आश्रय लिया-आपमें ऐसा कोई स्थान सूना नहीं जहाँ गुणोंने अपना स्थान न किया हो तो इसमें आश्चर्य क्या ? क्योंकि नाना प्रकार आश्रय पाकर गर्वसे मस्त हुए दोषोंने तो आपको स्वप्नमें भी नहीं देख पाया।