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जितशत्रुकी कथा |
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मारा हुआ पार्वतीको साथ रखता है वह 'शंकर' संसारको सुखकारी नहीं हो सकता । ! आप सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, और सम्यक्चारित्ररूप सत्यार्थ मोक्ष - मार्गका उप- देश करते हैं, इसलिए आप ही सच्चे ब्रह्मा हैं । किन्तु जिसने वेदों द्वारा जीवोंकी हिंसाका उपदेश करके नरकका विधान किया, जो रंभा नामकी अप्सरा पर आसक्त हो गया वह धाता ' अर्थात् ब्रह्मा नहीं कहा जा सकता; क्योंकि वह मोक्ष - मार्गका उपदेशक नहीं है । और नाथ ! आप ही साक्षात् ' पुरुषोत्तम' अर्थात् पुरुष-श्रेष्ठ 'श्रीकृष्ण हो । किन्तु लोग जिसे पुरुषोत्तम अर्थात् कृष्ण कहते हैं, वह सच्चा कृष्ण नहीं है, कारण वह गोपियोंके साथ क्रीड़ा करनेवाला एक ग्वाल है । जितशत्रु की कथा |
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जो लोग इन श्लोकोंके मंत्रोंकी पवित्र भावोंसे आराधना करते हैं, उन्हें व्यन्तर आदि देवोंकी बाधा नहीं होती । इसकी कथा इस प्रकार हैं.
सूरीपुर नामका एक बहुत सुन्दर शहर है । उसकी शोभा स्वर्गसे भी बढ़कर हैं । उसमें बड़े ऊँचे ऊँचे महल हैं । उनके शिखरों पर T लगे हुए सोनेके कलश बड़ी शोभा देते हैं। उन्हें देख कर चित्तमें यह कल्पना उठती है - मानो एक साथ हजारों सूर्य उदयाचल पर उदित हुए हैं। सूरीपुर न केवल धनी लोगोंसे ही युक्त है; किन्तु उसमें बड़े बड़े विद्वान् लोग भी निवास करते हैं । उनकी प्रतिभाके सामने बृहस्पतिको भी नीचा देखना पड़ता है ।
सरीपुर के राजाका नाम जितशत्रु है । वह बड़ा नीतिज्ञ, पराक्रमी, और तेजस्वी है । शत्रुगण उससे डर कर जंगलोंमें मारे मारे फिरते हैं; मूर्ख लोग अपनेको भूषणोंसे सजाते हैं, पर जितशत्रुने अपनेको गुणरूपी भूषण से सजाया था । इस कारण वह बड़ा शोभता था । वह ऐश्वर्य, सेना, दुर्ग आदि राज्यके सात अंगोंसे युक्त था । संसारमें उसके नामकी बडी धाक पडती थी।