________________
आर्यनन्दी मुनिकी कथा ।
मुनिने कहा - " जैसा तुमने कहा वैसा यदि कर सकती हो तो आजसे तुम जीवोंकी हिंसा करना और कराना छोड़ कर दयाको स्वीकार करो और इसके साथ पवित्र सम्यक्त्वको ग्रहण करो। "
इसके बाद देवी मुनिकी आज्ञा से जीवहिंसाका परित्याग कर चली गई । इस प्रकार मंत्र - प्रभावसे देवतों को भी आज्ञाकारी बनते देखकर बहुतों ने सम्यक्त्व - पूर्वक जैनधर्म ग्रहण किया, बहुतोंने अपने चिरसंचित मिथ्यात्वका परित्याग किया । धर्मकी खूब प्रभावना हुई ।
त्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसंख्यमाद्यं ब्रह्माणमीश्वरमनन्तमनङ्गकेतुम् । योगीश्वरं विदितयोगमनेकमेकं
ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः ॥ २४ ॥ बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चितबुद्धिबोधा
त्त्वं शंकरोऽसि भुवनत्रयशंकरत्वात् । धातासि धीर शिवमार्गविधेर्विधानात
४९
व्यक्तं त्वमेव भगवन्पुरुषोत्तमोऽसि ।। २५ ।। हिन्दी - पद्यानुवाद | योगीश, अव्यय, अचिन्त्य, अनङ्गकेतु,
ब्रह्मा, असंख्य, परमेश्वर, एक, नाना, ज्ञानस्वरूप, विभु, निर्मल, योगवेत्ता,
त्यों आद्य, सन्त तुझको कहते अनन्त ॥ तू बुद्ध है विबुध-पूजित - बुद्धिवाला,
कल्याण-कर्तृवर शंकर भी तुही है। तू मोक्ष-मार्ग - विधि-कारक है विधाता, है व्यक्त नाथ ! पुरुषोत्तम भी तुही है ।
भ० ४