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________________ ... भक्तामर कथा। लोकहीमें प्रकाश करता है, और आप सदा, एक साथ और तीनों लोकोंको प्रकाशित करते हैं । सूर्यके प्रभावको-तेजको बादल ढक देते हैं, और आपका प्रभाव किसीसे नहीं ढका जा सकता। केलिप्रियकी कथा। इन श्लोकोंके मंत्रोंकी आराधनासे दूसरे मतोंका प्रभाव अपने पर नहीं पड़ पाता । उसकी कथा इस प्रकार है एक सगरपुर नामक शहर है। उसके राजाका नाम भी सगर है । राजा बड़े पराक्रमी और तेजस्वी हैं । उन्होंने अपने तेजसे शत्रुओंको पराजित कर दिए हैं। उनका केलिप्रिय नामका एक पुत्र था । वह बड़ा व्यसनी और पक्का नास्तिक था। उसे धर्म-कर्म पर बिल्कुल विश्वास नहीं था। उसके पिता उसे बहुत समझाते थे; परंतु उसके हृदय पर. उसका कुछ असर नहीं पड़ता था। वह कहता था-शरीरसे भिन्न न कोई जीव-आत्मा है, और न पुण्य पाप ही कोई चीज है। इसलिए जीवोंको स्वच्छंन्द होकर सुख भोगना चाहिए । यह जीवन सुख भोगनेके लिए ही है। ___ राजा उसका इस तरह सुमार्ग पर आना असंभव समझ एक दिन अपने गुरु गुणभूषणके पास गए और उनसे उन्होंने पुत्रका सब हाल कहा । गुरुने राजाको समझाया कि तुम इसकी कोई चिन्ता न करो। हम उसे समझा लेंगे । राजा संतोषजनक उत्तर पाकर अपने महल लौट आये। ___ इस बातको कुछ दिन बीत गए । एक दिन सुयोग देख कर मुनिने भक्तामरके काव्यकी आराधना की । उसके प्रभावसे चक्रेश्वरी देवीने प्रत्यक्ष होकर कहा-महाराज ! आज्ञा कीजिए । मुनि बोले-देवी ! तुम
SR No.002454
Book TitleBhaktamar Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherJain Sahitya Prasarak karyalay
Publication Year1930
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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