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________________ भक्तामर-कथा। मंत्र-ॐ हीं अहणमो भगवते महति महावीर वड्डमाण बुद्धिरिसीणं ॐ हां ही हूं हौं हः असि आ उ सा झौं झौं स्वाहा । ॐ नमो वंभचारिणे अडारहसहस्स सीलांगरथधारिणे नमः स्वाहा। विधि-४९ दिनतक प्रतिदिन १०८ बार जपनेसे और यंत्र पास रखनेसे मनोवाञ्छित कार्यकी सिद्धि होती है, और जिसे अपने अधीन करना हो उसका नाम चिन्तवन करनेसे वह अपने वश होता है । आवश्यकीय सूचना। ऊपर लिखी विधियोंमेंसे जिस विधिमें वस्त्र, आसन और मालाका प्रकार नहीं बतलाया गया है उसे नीचे भांति समझ लेवें: 'वशीकरण'- मंत्रके साधनेमें पीला वस्त्र, पीली माला और पीला आसन लेना चाहिए। 'मारन'- में काला वस्त्र, काला आसन और काली माला लेना चाहिए। 'लक्ष्मी-प्राप्ति' के मंत्र-साधनमें मोतीकी माला और सफेद वस्त्र लेना चाहिए। 'मोहन' में मूंगाकी माला और लाल वस्त्र लेना चाहिए । 'आकर्षण ' में हरा वस्त्र और हरी माला लेना चाहिए। जिस विधिमें दिशा न बतलाई गई हो उसका विधान करते समय पूषको मुख करके बैठे। - यंत्र भोजपत्र पर अनारकी कलम द्वारा केशरसे लिखना चाहिए। प्रकाशका
SR No.002454
Book TitleBhaktamar Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherJain Sahitya Prasarak karyalay
Publication Year1930
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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