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ऋद्धि, मंत्र और साधनविधि।
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फल-ऋद्धिमंत्रकी आराधना और यंत्र-पूजनसे सब प्रकारका भय मिटता है, युद्धमें हथियारकी चोट नहीं लगती तथा राजद्वारा धनलाभ होता है। ४४--
ऋद्धि-ॐ ही अहे णमो अमीयसवाणं ।
मंत्र-ॐ नमो रावणाय विभीषणाय कुंभकरणाय लंकाधिपतये महाबलपराक्रमाय मनश्चितितं कुरु कुरु स्वाहा।
फल-ऋद्धिमंत्रकी आराधना और यंत्रके पास रखनेसे आपत्ति मिटती है, समुमें तूफानका भय नहीं होता-समुद्र पार कर लिया जाता है । ४५
ऋद्धि-ॐ ही अहं णमो अक्खीणमहाणसाणं ।
मंत्र-ॐ नमो भगवती क्षुद्रोपद्रवशान्तिकारिणी रोगकष्टज्वरोपशमनं शान्ति कुरु 'कुरु स्वाहा।
विधि-ऋद्धिमंत्रकी आराधनासे और यंत्रके पास रखनेसे बड़ेसे बड़ा भय मिटता है, प्रताप प्रकट होता है, रोग नष्ट होता है और उपसर्ग वगैरहका भय नहीं रहता। ४६
ऋद्धि--ॐ हीं अहं णमो वडमाणाणं । .. मंत्र--ॐ नमो हां हीं श्रींहूं हौं हः ठः ठः जः जःक्षा क्षी झू क्षः क्षयः स्वाहा।
विधि-ऋद्धिमंत्र जपने और यंत्र पास रखने तथा उसकी त्रिकाल पूजा करनेसे कैदखानेसे छुटकारा होता है, राजा वगैरहका भय नहीं रहता। विधान-प्रतिदिन १०८ बार जाप्य करना चाहिए।
ऋद्धि-ॐ अहे णमो वडमाणाणं ।। मंत्र-ॐ नमो हां ही हूं हा यक्ष श्रीं हीं फट् स्वाहा।
विधि-१०८ बार ऋद्धिमंत्रकी आराधनाकर शत्रुपर चढ़ाई करनेवालेको विजयलक्ष्मी प्राप्त होती है, शत्रु वश होता है, शत्रुके शस्त्रोंकी धार बेकाम होजाती है, बन्दूककी गोली, बरछी आदिके घाव नहीं हो पाते ।
ऋद्धि-ॐही अहं णमो सव्वसाहूणं ।