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________________ १२८ १०८ बार जपनेसे भी उपर्युक्त फल होता है । इस विधि में धूप कुन्दस्की होनी चाहिए। १२ भक्तामर कथा ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्ह णमो वोहिबुद्धीणं । - मंत्र — ॐ आं आं अं अः सर्वराजाप्रजामोहिनी सर्वजनवश्यं कुरु कुरु स्वाहा । विधि-यंत्र पास रखने और १०८ बार उक्त मंत्र द्वारा तेल मंत्रकर हाथीको पिलानेसे उसका मद उतर जाता है । विधान - ४२ दिनतक प्रतिदिन १००० जाप लाल मालासे करना चाहिए । धूप दशांग हो । 7 १३– ऋद्धि - ॐ ह्रीं अर्ह गमो ऋजुमदीणं । ) मंत्र — ॐ ह्रीं श्रीं हंसः न्हीं हां नहीं द्रां द्रीं द्रौं द्रः मोहनी सर्वजनवश्यं कुरु कुरु स्वाहा । विधि - यंत्र पास रखने और ७ कंकरी लेकर प्रत्येकको १०८ बार मंत्रकर चारों ओर फेंकनेसे चोर चोरी नहीं कर पाते और रास्तेमें किसी प्रकारका भय नहीं रहता। विधान - पीली मालासे ७ दिनतक प्रतिदिन १००० जाप करना चाहिए। धूप कुन्दरुकी हो । पृथ्वीपर सोना चाहिए और एक भुक्त करना चाहिए 1 १४ ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो विमदी । मंत्र - ॐ नमो भगवती गुणवती महामानसी स्वाहा । विधि-यंत्र पास रखने और ७ कंकरी लेकर प्रत्येकको २१ बार मंत्रकर चारों ओर फेंकने से व्याधि, शत्रु आदिका भय नष्ट होता है, लक्ष्मीकी प्राप्ति होती है और वातरोग नष्ट होता है । १५ ऋद्धि ॐ ह्रीं अर्ह णमो दसपुव्वीणं । मंत्र — ॐ नमो भगवती गुणवती सुसीमा पृथ्वी वज्रशृंखला मानसी महामानसी स्वाहा । विधि - यंत्र पास रखने और मंत्रद्वारा २१ बार तेल मंत्रकर मुखपर लगानेसे राजदरबारमें बोलबाला रहे, सौभाग्य बढ़े और लक्ष्मीकी प्राप्ति हो । विधान - १४ दिनतक प्रतिदिन लाल माला द्वारा १००० जाप करनी चाहिए, दशांग धूप हो और एकभुक्त करना चाहिए ।
SR No.002454
Book TitleBhaktamar Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherJain Sahitya Prasarak karyalay
Publication Year1930
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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