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गुणवर्माकी कथा।
नाथ ! जिस भाँति ऊगते हुए सूर्यकी किरणोंसे अन्धकार नष्ट हो जाता है उसी भाँति आपके नामका स्मरण करनेसे, उछलते हुए घोड़ोंकी हिनहिनाहट और हाथियोंकी चिंघाड़से भयंकर बलवान राजोंकी सेना भी युद्धभूमिसे भाग जाती है।
प्रभो! आपके चरणाश्रित जन दुर्जय शत्रुको पराजित कर उस भयंकर युद्धमें जयलाभ करते हैं जिसमें भालोंकी अणियोंसे विदीर्ण हुए हाथियोंके रक्तके प्रवाहको वेगसे पार करनेके लिए योद्धागण बड़े आतुर रहते हैं।
गुणवर्माकी कथा । उक्त पद्योंकी जो भक्ति और पवित्रताके साथ आराधना करते हैं, वे युद्धमें जयलाभ करते हैं । उसकी कथा इस प्रकार है:___ मथुराके राजाका नाम रणकेतु था । वे बड़े बुद्धिमान, और पराक्रमी योद्धा थे। उनके छोटे भाईका नाम गुणवर्मा था। उनकी जिनधर्मपर बड़ी श्रद्धा थी । उनका नियम था कि वे निरंतर भगवानकी पूजा और भक्तामर-स्तोत्रकी आराधना कर भोजन करते थे। मंत्रके प्रभावसे उनका यश और नाम खूब फैल रहा था। ___ एक दिन रणकेतुकी स्त्रीने उनसे कहा-प्राणनाथ ! आपके सुखी रहनेमें ही मेरा सुख है, इस कारण उचित न होने पर भी आपके सुखके लिए मुझे एक बात कहनी पड़ती है। उसमें मेरा अपराध हो तो क्षमा कीजिएगा। . - बात यह है-"आपके भाई बड़े तेजस्वी हैं, भाग्यशाली हैं और गुणज्ञ भी हैं। सब राजे-महाराजे उन्हें ही पूछते हैं । आपकी तो उनके सामने कुछ भी नहीं चलती । इसका भविष्य मुझे यह जान पड़ता है कि कुछ दिनोंमें वे आपका राज्य छीन कर स्वयं उसके अधिकारी बन बैठेंगे । इसलिए इसकी चिन्ता अभीसे करनी उचित है।"