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( ४६) . भक्तामर स्तोत्र भाषा
[श्री पं० गिरिधर शर्मा कृत] हैं भक्त देव-नत-मौलि-मणिप्रभा के, . * ....... ... ... उद्योत-कारक, विनाशक पापके हैं। आधार जो भव-पयोधि पड़े. जनोंके,
. .. अच्छी तरह नम उन्हीं प्रभुके पदों को ॥१॥ श्री आदिनाथ विभुकी स्तुति मैं करूंगा,
' की देव-लोक-पति ने स्तुति है जिन्हों की। अत्यन्त सुन्दर जगत्रय-चित्तहारी, . .
सुस्तोत्र से, सकल शास्त्र रहस्य पाके ॥२॥ हूं बुद्धिहीन, फिर भी बुध-पूज्यपाद !
तैयार स्तवनको निर्लज्ज होके । है और कौन जगमें तज बाल को जो, ........ .. लेना चहे सलिल-संस्थित चन्द्र-बिम्ब ? ॥३॥ होवे बृहस्पति-समान सुबुद्धि तो भी।
.. है कौन जो गिन सके तव सद्गुणों को ? कल्पान्त-वायु-वश सिन्धु अलंघ्य जो है,
है कौन जो तिर सके उसको भुजासे ? ॥४॥ हूं शक्तिहीन फिर भी करने लगा हूं, ... ...
. तेरी प्रभो, स्तुति, हुआ वश-भक्तिके मैं । क्या मोह के वश हुआ शिशु को बचाने,
है सामना न करता मृग सिंह का भी ॥५॥ हूँ अल्पबुद्धि, बुध-मानव की हँसी का,
हूँ पात्र, भक्ति-तव है मुझको बुलाती।