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(४) सर्व भयानक रोग नाशक
उद्भूत-भीषण जलोदर-भार-भुग्नाः,
शोच्यां दशा-मुपगताश्- च्युत- जीविताशाः ॥ त्वत्पाद - पंकज - रजोमृतदिग्ध - देहाः,
मर्त्या भवन्ति मकरध्वज- तुल्य-रूपाः ॥४५॥ महा जलोदर रोग, भार पीड़ित नर जे हैं,
बात, पित्त, कफ, कुष्ट श्रादि जो रोग गहे हें सोचत रहैं उदास नाहि जीवन की आशा,
अति घिनावनी देह धरै दुर्गन्ध निवासा तुम पद पंकज धूल को, जो लावे निज अंग ।
ते नीरोग शरीर लहि, छिनमें होंय अनंग ॥
अर्थ – हे अजरामर प्रभो ! जलोदर रोग के कारण जो व्यक्ति पेट के भार से खेद-भिन्न हैं, भयानक रोग के कारण जिनकी दशा: शोचनीय है, जिनके जीवित रहने की आशा नहीं रही, ऐसे रोगीजन यदि आपके चरणों की धूल अपने शरीर से लगाते हैं तो वे नीरोग होकर कामदेव के समान सुन्दर हो जाते हैं ॥४५॥
ऋद्धि - ॐ ह्रीं अर्हं णमो अक्खीण- महाण- साणं ।
मन्त्र — ॐ नमो भगवती क्षुद्रोपद्रव शान्ति कारिणी रोगकष्टज्वरोपशमनं शान्ति कुरु कुरु स्वाहा ।
Even thase, who are drooping with the weight of terrible dropsy and have given up the hope of life and have reached a deplorable condition, become as beautiful as Cupid by besmearing their bodies with the nectar-like pollen dust of Thy lotusfeet. 45.