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(३१) राज्य सम्मान दायक व चर्म रोग नाशक छत्र-त्रयं तव विभाति शशांक-कान्त
मुच्चैः स्थितं स्थगित-भानु-कर-प्रतापम् । मुक्ता-फल-प्रकर-जाल-विवृद्ध-शोभं,
प्रख्यापयत्-त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ॥३१॥
ऊँचे रहैं सूर-दुति लोप, तीन छत्र तुम दिपै अगोप। तीन लोक की प्रभुता कहैं, मोती झालर सों छवि लहैं ।
अर्थ-हे ईश ! चन्द्रमा समान कान्तिमान, सूर्य की धूप को रोकने वाले, मोतियों की झालर से शोभायमान, आपके ऊपर ऊँचे लगे हुए तीन छत्र आपको तीन जगत् को प्रभुता को प्रगट करते हुए बहुत शोभा देते हैं ॥३१॥
ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो घोर गुण-परक्कमाणं ।
मन्त्र-ॐ उवसग्गहरं पासं वंदामि कम्म-घण-मुक्कं विसहरविस-णिर्णासिणं मंगल-कल्लाण आवासं ॐ ह्रीं नमः स्वाहा ।
The three umbrellas charming like the moon, which are held high above Thee, and the beauty of which has been enhanced by the net-work of pearls and which obstructs the heat of the sun's rays, looks very beautiful, proclaiming, a it were, Thy . supreme lordship over all the three worlds. 31..