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जलजन्तु निरोधक वक्तुं गुणान् गुण-समुद्र शशांक-कान्तान्, __ कस्ते क्षमः सुर-गुरु-प्रतिमोऽपि बुद्धया। कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-नक्र-चक्रं,
को वा तरीतु-मलमम्बु निधिं भुजाभ्याम् ॥४॥
गुनसमुद्र तुम गुन अविकार, कहत न सुरगुरु पावें पार । प्रलय पवन उद्धत जलजन्तु, जलधि तिरै को भुज बलवन्तु ॥
.. अर्थ-हे गुणसागर प्रभो! आपके चन्द्र समान उज्ज्वल गुणों को वृहस्पति के समान बुद्धिमान् विद्वान् भी अपनी बुद्धि से नहीं कह सकता । जैसे कि प्रलय समय की प्रबल वायु से उद्वेलित, मगरमच्छों से भरे हुए समुद्र को अपनी भुजाओं से कौन पार कर सकता है ? यानी-कोई भी नहीं ॥४॥ ..
ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो सव्वोहि जिणाणं । . मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं जलयात्रा जलदेवताभ्यो नमः स्वाहा ।
Lord, Thou art the very ocean of virtues. Who though vying in wisdom with the preceptor of the gods, can describe Thine excellences spotless like the moon ? Whoever can cross with hands the ocean, full of alligators lashed to fury by the winds of the Doorn sday. 4