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सर्वसिद्धिदायक बुद्धया विनापि विबुधाचित-पाद-पीठ,
स्तोतु समुद्यत-मतिविगत-त्रपोऽहम् । बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब- मन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥३॥ विबुध-वंद्यपद ! मैं मति-हीन, हो निलज्ज थुति मनसा कीन जल-प्रतिबिम्ब बुद्ध को गहै, शशिमण्डल बालक ही चहै। ___ अर्थ-हे विद्वानों द्वारा पूज्य-चरण भगवन् ! मैं आपकी स्तुति करने योग्य बुद्धि न रखता हुआ भी लज्जा छोड़कर आपकी स्तुति करने के लिये तत्पर (तैयार) हुआ हूँ। जैसे-पानी में प्रतिबिम्बित (परछाई वाले) चन्द्रमा को बच्चे के सिवाय अन्य कौन बुद्धिमान् मनुष्य पकड़ना चाहता है ? (कोई नहीं) ॥३॥
ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो परमोहिजिणाणं ।
मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सिद्धेभ्यो बुद्धेभ्यः सर्वसिद्धिदायकेभ्यो नमः स्वाहा।
Shameless I am, O Lord, as I, though devoid of wisdom, have decided to eulogise You, whose feet have been worshipped by the gods. Who, but an infant, suddenly wishes to grasp the disc of the moon reflected in water ? 3.