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________________ (२६) आभार सुप्रसिद्ध विद्वान् श्री स्वर्गीय पं० अजितकुमार जी शास्त्री ने 'परिचय' में भक्तामर के विषय में पर्याप्त प्रकाश डाला है । अतः इस विषय में अधिक नहीं लिखा जा रहा है । इसके पिछले सम्पादक . भी वही थे। उनकी विद्वत्ता और सेवायें जैन इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। प्रस्तुत प्रकाशन __ प्रबन्धकों का आग्रह था कि नये संस्करण में परिवर्तन और परिवर्द्धन हो तथा लिखित और छपी प्रतियों के आधार पर अर्थ ऋद्धि-मंत्र तथा यंत्रादि को मिलाकर इसका पुनः सम्पादन किया जाय । अत: इसी ढंग से इस कार्य को सम्पन्न करने का यत्न किया गया है। मंत्र-शास्त्र का ज्ञान न होने से इसमें त्रुटियां रहना संभव है । संस्कृत कम जानने वाले भी इस महान् । भक्तामर) स्तोत्र का सुलभता से ठीक २ और शुद्ध पाठ कर सकें, इस दृष्टि से उच्चारण का पूर्ण ध्यान रखकर जगह २ बड़े पदों का विभाजन भी कर दिया गया है। आशा है विज्ञजन क्षमा करेंगे। इस कार्य में श्री बाबू श्रीकृष्ण जी जैन का पूर्ण सहयोग रहा है । वे अत्यन्त उत्साही और धर्म-प्रेमी सज्जन हैं। उन्हें साहित्य प्रचार की बड़ी रुचि और लगन है । आपने मेरे साथ बहुत समय लगाया है तथा इसे सर्वांग सुन्दर बनाने और प्रकाशन में पयप्र्ता परिश्रम किया है। साथ ही जैन शास्त्र स्वाध्याय शाला को भी हार्दिक धन्यवाद है जिनके यहां से अल्प मूल्य में ऐसे कई सुन्दर और उपयोगी प्रकाशन हो चुके हैं। यह कार्य बहुत बड़ा धर्म-सेवा का कार्य है। विनीत हीरालाल जैन “कौशल" (साहित्यरत्न, शास्त्री, न्यायतीर्थ) अध्यक्ष, जैन विद्वत्समिति, देहली
SR No.002453
Book TitleBhaktamar Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherShastra Swadhya Mala
Publication Year1974
Total Pages152
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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