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________________ ५८ ] [ तित्थोगाली पइन्नय पांच ऐरवत क्षेत्रों में पांच भरत क्षेत्रों में इस प्रकार दस तीर्थ करों का जन्म हुआ है । सब देवगणों को विदित कर दो कि हम सब उन तीर्थ कर प्रभुओं का जन्माभिषेक करेंगे ।१९१॥ सक्कीसाणाणतो, तो ते घेत्तु सुरे विसय सुत्त । वयण भणंति भणिया, सुघोस घंटाए बोहेउ ।१९२।' (शक शाना-ज्ञातः ततस्ते गृहीतुं सुरान् विषयसुप्तान् । वचनं भणन्ति भणिताः, सुघोष घंटया बोधयितु ।) शक्र और ईशानेन्द्र के इस आदेश को सुनते ही विषयसुख में निमग्न देवताओं को इन्द्रों की आज्ञा से परिचित करने तथा उन्हें साथ लेने के लिये हरि-नैगमेषी देव सुघोष घण्टा का घोष करते हए इस प्रकार के वचन बोलते हैं । १६२। भो भो सुणंतु सव्वे, सुरवसहा सुरवतीण वयणमिणं । एग समएण जाया, दसवि जिणा दससु वासेसु ।१९३। . (भो भो शण्वन्तु सर्वे, सुरवृषभाः सुरपतीनां वचनमिदम् । एकसमयेन जाताः, दशोऽपि जिनाः दशषु वर्षेषु ) "हे सुरवृषभो ! देवेन्द्रों के इस निर्देश को आप सभी सुनिये" "भरत ऐरवत आदि दशों क्षेत्रों में एक ही समय में दशों ही तीर्थङ्करों का जन्म हुआ है । १६३। ता तेसिं जम्म महो, जम्मजरामरणविप्प मुक्काणं । वच्चामो मणुयलोगं, जिणभिसेगस्स कज्जेण १९४। (ततः तेषां जन्म महो, जन्मजरामरण विमुक्तानाम् । व्रजामो मनुष्यलोकं, जिनाभिषेकस्य कार्येण ।) जन्म-जरा-मृत्यु से सदा-सर्वदा के लिये विप्रमुक्त होने वाले उन जिनेश्वरों का जन्म महोत्सव मनाने, जिनाभिषेक का कार्य निष्पन्न करने के लिये हम मनुष्य लोक में जा रहे हैं । १६४।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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