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तित्योगाली पइन्नय ]
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तस्सागुरूवसी सा, सव्वंगोवंगलक्षण-पसत्था । उत्तमरूव सरूवा, जाया मरुदेवि नामित्ति ।९४। (तस्यानुरूपवती सा, सर्वांङ् गोपाङ गलक्षणप्रशस्ता । उत्तमरूप-सुरूपा, जाया मरुदेविनामेति ।।)
उनकी, उनके समान परम रूपवती, सभी अंगोपांगों के समस्त सुलक्षणों से श्रेष्ठ, उत्तम रूप और स्वरूप सम्पन्ना मरुदेवी नामक पत्नी थी।६४। तीए उदरंमि तीसो, तिनाणसहिओमहायसो भयवं । गब्भत्ता उववन्नो, पढमीसो भरहवासस्स ।९५॥ (तस्या उदरेत्रयीशः त्रिज्ञानसहितः महायशा भगवान् । गर्भतया उपपन्नः, प्रथमेशः भरतवर्षस्य ।।)
उन मरुदेवी की कुक्षि में तीन ज्ञानधारी महायशस्वी त्रैलोक्यनाथ भगवान भारतवर्ष के प्रथम अधिपति आविर्भूत हुए । ६५॥ एवं नव तित्थयरा, चंदाणणमाइ नवसु खेत्ते सु । चइऊण विमाणधरा, उत्तरसाढाहिं नक्खत्ते ।९६। (एवं नव तीर्थ कराः, चन्द्रानन आदि नवसु क्षेत्रेषु । च्युत्वा विमानधराः, उत्तराषाढायां नक्षत्रे ।।)
इसी प्रकार ऐरवत आदि ६ क्षेत्रों में चन्द्रानन आदि . तीर्थङ्कर उत्तराषाढा नक्षत्र में विमानों से चव कर ।६६। कुलगरवंसपमूआ, आसी इक्खागवंस संभूया । नवकुलगर नाभिसमा, पवरा तेसि नरगणाणं ।९७) (कुलकरवंशप्रसूताः आसन् इक्ष्वाकुवंश-संभूताः । नव कुलकर-नाभिसमाः, प्रवराः तेषां नरगणानाम् ।।)
(उपर्युक्त ६ क्षेत्रों में उसी समय) कुलकर वंश में प्रसूत, इक्ष्वाकुवंशावतंस नाभि कुलकर के ही समान उस समय के मानवों में श्रोष्ठतम ६ कुलकर हुए ।१७।