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[ तित्थोगाली पइन्नय (यच्चैव आयुष कुलकराणां, तच्चैव भवति तासामपि । यत्प्रथमकस्यायुः, तावत्कं भवति हस्तिनः ।)
कुलकरों की जितनी आयु होती है, उतनी ही प्रायु कुलकर पत्नियों की भी होती है । प्रथम कुलकर की आयु के समान ही उनके हाथी की भी प्राय होती है ।८३। जं जस्स आयुयं खलु, तं दसभाए समं विभहण । . . मझिल निभाग, कुलगर-कालं वियाणाहिं ।८।। (यद्यस्य आयुष्यं खलु, तत् दशभागैस विभज्य । मध्यमकं त्रिभागं, कुलकर-कालं विजानीथ ।)
जिस कुलकर की जितनी आय है. उस आय को समान रूप से दश भागों में विभाजित किया जाय । उन दश भागों में से मध्य के तीन भागों को कुलकर का कुलकर काल समझना चाहिए।८४॥ पढमो य कुमारचे, भागो चरिमो य वुडढमामि । तप्पयणुपेज्जदोसा, सव्वे देवेसु उववण्णा ।८५। (प्रथमश्च कुमारत्वे, भागः चरमश्च वृद्धभावे । तत्प्रतनुप्रयदोषाः, सर्वे देवेषु उत्पन्नाः ।)
। प्रत्येक कुलकर का उसकी आयु के दश भागों में से कुलकरकाल के पहले का भाग कुमारावस्था में और अन्तिम भाग वृद्धावस्था में व्यतीत होता है ।८५॥ दो चेव सुवण्णेसु उदहिकुमारेसु होति दो चेव । दो दीवकुमारेसु एगो नागेसु उववण्णो । ८६ । (द्वौ चैव सुवर्णेषु, उदधिकुमारेषु भवतः द्वौ चैव । द्वौ दीपकुमारेषु, एकः नागेषु उपपन्नः ।)
उन सात कुलकरों में से दो कुलकर स्वर्णकुमारों में, दो उदधिकुमारों में, दो दीपकुमारों में उत्पन्न हुए तथा एक नागकुमारों में ।८६।