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________________ तित्थोगाली पइन्नय ] - [३७१ अज्जुएण सुवन्नगमयी, नामेण सुदंसणा पभासा य । संख तूल संनिगासा, छत्तागारा य सा पुढवी ।१२३४। .. (अर्जुनस्वर्णकमयी, नाम्ना सुदर्शना प्रभासा च । शंख-तूल सन्निकाशा, छत्राकारा च सा पृथ्वी ।) अर्जुन स्वर्णमयी (श्वेत स्वर्णमयी- Made of Platinum) सुदर्शन प्रभानाम की वह सिद्धशिला पृथ्वी शंख अथवा रूई के समान श्वेत और औंध अथवा उल्टे किये हुए छत्र के आकार को है ।१२३४। ईसि पब्भाराए उवरि, खलु जोयणस्स जो कोसो । कोसस्स [य] छब्भाए, सिद्धाणो गाहण भणिया ।१२३५। । (ईषत् प्रारभाराया उपरि, खलु योजनस्य यः क्रोशः । क्रोशस्य [च] पड्भागे, सिद्धानामवगाहना भणिता ।) ईषत प्राग्भारा पृथ्वी पर योजन के कोस भागों में से एक कोस के छठे भाग में सिद्धों की अवगाहना बताई गई है ।१२३५॥ कहिं पडिहयां सिद्धा, कहिं सिद्धा पइट्ठिया ।। कहिं बोदि चइचाणं कत्थ गंतूण सिज्झई १२३६। (क्व प्रतिहताः सिद्धाः, क्व सिद्धाः प्रतिष्ठिताः ।। क्व शरीरं त्यक्त्वा, कुना गत्वा सिद्धयन्ति ।) सिद्ध कहां प्रतिहत हुए हैं अर्थात् सिद्धों की गति कहां जाकर रुकी-अवरुद्ध हुई है ? सिद्ध कहाँ प्रतिष्ठित अर्थात् विराजमान हैं ? वे कहां से शरीर का त्याग कर, किस स्थान पर जाकर सिद्ध हैं ? ।१२३६। अलोए पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्ठिया । इहं बांदि चइताणं, तत्थ गंतूण सिज्झई ।१२३७। . .. भाषाविज्ञान दृष्ट्यां प्राकृत भाषाया: 'बोंदि' शब्दस्यातन्तिकं महत्त्वं । पांग्ल भाषोया Body बाँडी शब्देन साद्ध मस्य साम्यं विचारणीयमस्ति ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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