________________
तित्थोगाली पइन्नय ]
[३६९
सर्वार्थसिद्ध विमान से १२ योजन ऊंची, लोक में सर्वोपरि अर्थात् लोक के अग्रभाग पर, ईषत्प्राग्भारा नाम की वह भूमि (सिद्ध शिला) छत्राकार में संस्थित है । १२२८|
निम्मल दगरय बन्ना, तुसार गौखीर हार सरिवन्ना । भणियाउ जिणवरेहि, उत्चाणम छत संठाणा | १२२९ । (निर्मल दगरजवर्णा, तुषारगौक्षीर हार सदृग्वर्णा । भणिता तु जिनवरैः, उचानकछत्र संस्थाना । )
जिनवरों द्वारा वह पृथ्वी, निर्मल जल की कणिका, तुषार, गाय के दूध की धार के समान वर्ण वाली और औधे किये हुए छत्र तुल्य संस्थान वाली बताई गई है । १२२६|
ईसीप भारांए, सीयाए जो यणंमि लोगंतो ।
बारसहिं जोयणेहिं. सिद्धी सव्वसिद्धा । १२३० । ( ईषत् प्राग्भारायाः सितायाः योजने लोकान्तः । द्वादशभिर्योजनैः, सिद्धिः [भुक्तिः ] सर्वार्थसिद्धात् । )
उस श्वेतवर्णा ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी अर्थात् सिद्धि अथवा मुक्ति से एक योजन ऊपर लोकान्त है । ( उससे आगे द्य ुलोक है) यह सिद्ध भूमि सर्वार्थ सिद्ध विमान से १२ योजन ऊपर है । १२३०
पणयालीस आयामा वित्थड़ा होइ सत सहस्साईं ।
.
1
-
तंपि तिगुण विसेस, परिरओ होइ बोधव्वो । १२३१| (पंचचत्वारिंशत् आयामा, विस्तीर्णा [च] भवति शतसहस्त्राणि । तमपि त्रिगुण विशेषं परिरयो [ परिधिः ] भवति बोद्धव्यः ।)
* दगरय — उदकरजस् । पानीय करिणकायाम् । जी० ३ प्रति०, ४ उ० । उदकरेगी |
तथा च 'दगवासाय
दकप्रासाद - स्फटिकरज; - इत्यर्थोऽपि भवनि ।
3
स्फटिक प्रासादे, जं० १ वक्ष० वचनात्