SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 394
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तित्थोगाली पइन्नय । [ ३६० - जिन शासन (जिनज्ञिापालन में कुशलता, प्रभावना, तृण सेवना (तप सेवना ?), विरक्ति और भक्ति-ये पांच उत्तम गुण सम्यक्त्व को प्रदीप्त (प्रकाशित) करने वाले हैं । १२२१॥ सव्वन्नू सव्व दरिसीय; वीतरागाय में जिणा । तम्हा जिणवस्वयणं, अवितहमिति भावतो मुणह ।१२२२। (सर्वज्ञाः सर्वदर्शिनश्चा, वीतरागश्च यज्जिनाः। तस्मात् जिनवरवचनं, अवितथमिति भावतः जानीहि ।) क्यों कि जिनेश्वर भगवान् सवज्ञ-सर्वदर्शी और वीतराग होते हैं 'अत: जिनेश्वर भगवान की वाणी शाश्वत सत्य होती है यह दृढ़ आस्था भाव पूर्वक मानना चाहिये१२२२।'' । संमत्तउ नाणं, सियवाय समन्नियं महाविसमं । भावाभावविभावें, दुवालगंगंपि गणिपिडगं ।१२२३। (सम्यक्त्वात् ज्ञान, स्याद्वादसमन्वितं महा विषमम् । भावाभावविभाग, द्वादशांगमपि गणिपिटकम् ।) ___ सम्यक्त्व से स्याद्वाद सहित भाव अभाव और विभाव तथा द्वादशांग्यात्मक गणिपिटक का भी अति गहन ज्ञान प्राप्त होता है ।१२२३। जं अन्नाणी कम्म, खवेइ बहुयाहिवास कोडीहिं ।।। सं नाणी तिहि गुत्तो, खवेइ ऊसासमेत्तेण ।१२२४। (यद् अज्ञानी कर्म, अपयति बहुकाभिर्वर्षकोटीभिः । तद् ज्ञानी त्रिभि गुप्तः, क्षपयति उच्छ वास मात्रेण ।) अज्ञानी व्यक्तिः जिस फर्मको अनेक करोड वर्षों के कठोर प्रयास से नष्ट करने में समर्थ होता है। उसी कर्म को मनगप्ति, वचन गुप्ति और कायगृप्ति- इन तीन गुप्तियों से गुप्त ज्ञानी व्यक्ति एक उच्छवासमात्र लेने जितने से समय में नष्ट कर डालता है । १२२४।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy