SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तित्थोगालो पइन्नय ] [ ३६३ यदि यह चाहते हो कि चरम लक्ष्य की अथवा अभीप्सित सुवों को प्राप्ति तथा इस लोक और परलोक में कल्याण हो, तो जिनेश्वर द्वारा प्ररूपित जिन धर्म को भाव पूर्वक ग्रहण करो।१२०७। खंती य मद्दवज्जव, मुत्ती तव संजमे य बोधव्वे । सच्चं सोयं अकिंचणं च, बंमं च जइ धंमो ।१२०८१ (क्षान्तिश्च मार्दवार्जव, मुक्तिः तपसंयमाश्च बोद्धव्याः । सत्यं शौचामकिंचनं च, ब्रह्म च यतिधर्मः ।) क्षमा मार्दव (मृदुता), सरलता, कर्मबन्ध से मुक्त होने की भावना, तपश्चरण, संयम. सत्य भाषण प्राभ्यन्तर शुद्धि, अकिंचन भाव और ब्रह्मचर्य का पालन-इन्हीं को यति धर्म जानना चाहिये ।१२०८। जो समो सव्व भूतेसु, तसेसु थावरेसु य । धम्मो दसविहो तस्स, इति केवलि भासियं ।१२०९। (य समः सर्वभूतेषु, बसेषु स्थावरेषु च । धर्मः दशविधस्तस्य, इति केलि भाषितम् ।) जो त्रस और स्थावर सभी प्रकार के प्राणियों में समभाव रखता है उसको दश प्रकार का धर्म प्राप्त है, यह त्रिकालदर्शी केवलज्ञानी भगवान् ने कहा है १२०६। जो दस विहं पि धम्म, सद्दहती सत्त तत्व संजुतं । सो होइ समादिट्ठी, संकादि दोसरहिओ य ।१२१०। (यः दशविधमपि धर्म, श्रद्दधाति सप्त तत्त्व संयुक्तम् । स भवति सम्यग्दृष्टिः, शंकादि दोष रहितश्च ।) ___ जो व्यक्ति सात तत्वों सहित दशों प्रकार के धर्म में श्रद्धा रखता . है, वह शंका, आकांक्षादि दोषों से रहित सम्यग्दृष्टि होता है ।१२१०। सम्म सण मूलं, दुविहं धम्म समासतो उत्त। जेट्टच समण धम्मं, सावग धम्मं च अणुजेडे ।१२११॥
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy