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________________ [तित्थोगाला पइन्नय (पल्योपम स्थितिकाः, निधिसदृशनामानश्च तेषु खलु देवाः। तेषां ते आवासाः, मनोहर गुणराशिसंपन्नाः ।) __एक पल्योपम की आयु वाले तथा उन निधियों के समान नाम वाले देवता उन निधियों में रहते हैं। मनोहर गुणराशियों से सम्पन्न वे निधियां हो उन देवों के आवास होतो हैं । ११४४। एए ते नवनिहिओ, पभूयधणकणगरयणपडिपुण्णा । अणुसमयमणुब्बयंति, चक्कीणं सतत कालंमि * ।११४५॥ (एते ते नवनिधयः, प्रभूतधनकनकरत्नप्रतिपूर्णाः । अनुसनयमनुव्रजन्ति, चक्रीन् सतत काळे ।) ये, वो नौ निधियां हैं जो विपुल धन स्वर्ण. रत्नादि से परिपूर्ण रहती हैं । ये नौ निधियां चक्रवर्ती के सम्पूर्ण चक्रवर्तित्व काल में प्रतिक्षरण चक्रवर्ती का अनुगमन करती हैं ।।११४५ आउग उच्चत्ताई, वण्णा रिद्धी य गति विसेसाई। ओसप्पिणी इमीसे, समाई जा बंभदत्ताई।११४६। (आयु-उच्चत्वादि वर्णाः रिद्धयश्च गति विशेषाणि ।. अवसर्पिण्यामिमायां. समानानि यावत ब्रह्मदत्तः ।) प्रवर्तमान अवसपिणी काल में प्रथम चक्रवर्ती भरत से लेकर अन्तिम चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त के चक्रित्व काल तक इन : निधियों को प्रायू ऊंचाई, वर्ण, ऋद्धि और गति आदि विशिष्टताए समान रहती है ।।११४६ एवं एते वुत्ता, कित्तीपुरिसाउ चक्किणो सब्वे । एत्तो परं तुवोच्छं, दसार वंसुब्भवा. जेउ ११४७। (एवं एते उक्ताः, कीर्तिपुरुषास्तु चक्रिणः सर्वे । इतः परं तु वक्ष्यामि, दशाहवंशोद्भवाः ये तु ।) * स्थानांगे तु-'जे वसमुव गच्छंती, सव्वेसि चक्कवट्टीणं ।" इति पाठः । द्वितीय चरणो 'कणग' शब्दस्याप्य भावः ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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