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। तित्थोगाली पइन्नय
वइसाह सुद्धदसमीए, केवलं नाम साल हेट्टमि । छट्टणक्कडुय सओ, उप्पण्णं जंभिया गामे ।१०९५। (वैशाख शुद्धदशम्यां. केवलं नाम सालस्य अधः । षष्ठेन उत्कुट सतः, उत्पन्न जम्भिका ग्रामे )
वैशाख शुक्ला दशमी के दिन ज़म्भिका नामक ग्राम के बाहर शालवृक्ष के नीचे उकडू ( गोदोहिका ) आसन से बैठे हुए बैले की तपस्या से केवल ज्ञान प्राप्त करेंगे ।१०६५ सेसाणंपि नवण्हं, एवं वइसाह सुद्धद समीए। हत्युत्तराहिं नाणं, होही जुगवं जिणंदाणं !१०९६। . (शेषानामपि नवानां, एवं वैशाख शुद्ध दशम्याम् । हस्तोत्तराभिर्ज्ञानं, भविष्यति युगपजजिनेद्राणाम् )
इसी प्रकार शेष द क्षेत्रों के ६ ( प्रथम ) तीर्थीकर भी वैशाख शुक्ला दशमी के दिन हस्तोत्तरा नक्षत्र के योग में एक साथ (एक हो समय में) केवल ज्ञान प्राप्त करेंगे ।१०६६। उप्पणमि अणते, नट्ठमिउ छाउमाथिए नाणे। . राइए संपत्तो, महसेणवणं तु उज्जाण १०९७ (उत्पन्ने अनन्ते, नष्टे तु छामस्थिके ज्ञाने । रात्रौ सम्प्राप्तः, महासेन वनं तु उद्यानम् ।)
अनन्त ज्ञान अनंत दर्शन और अनन्त चारित्र के उत्पन्न होने और छात्थिक ज्ञान के नष्ट होने पर जम्बू द्वीपस्थ भरत क्षेत्र के आगामी उस्सपिणी काल के) प्रथम तीर्थंकर भगवान् महापद्म रात्रि के समय में ही विहार कर महासेन वन नामक उद्यान में समवस्त होंगें । १०६७' अमरनर राय महिओ, पत्तो धम्मवर चक्कवदितं । बीयम्मि समोसरणे, पावाए मज्झिमाए उ ।१०९८१ (अमरनरराजमहितः, प्राप्तः धर्मवर चक्रवर्तीत्वम् । द्वितीये समवसरण, पावायां (अपायायां) मध्यमायां तु ।)