________________
तित्थोगाली पइन्नय ]
[ ३२३
षष्ठ भक्त ( बला) किये हुए प्रतिविशुद्ध अध्यवसायों ( परिणामों) एवं ल ेश्याओं से युक्त भगवान् महापद्म उस चन्द्रप्रभा पालकी पर प्रारूढ़ होंगे । १०७७
1
सीहासणे निसन्नो, सक्कीमाणेहिं दोहि पासेहिं ।
वीयंति चामरेहिं मणिकणगविचित्त दंडेहिं ॥ १०७८ ।
,
( सिंहासने निवण्णः शक्र शानाभ्यां द्वयोर्पार्श्वयोः । वीजयंति चामरैः, मणिकनकविचित्रदण्डैः । )
पालकों के मध्य भाग में स्थित सिंहासन पर प्रभु महापद्म आसीन होंगे। उनके दोनों पावों में खड़ शक्र तथा ईशानेन्द्र स्वर्ण एवं मणियों से विनिर्मित दण्डों वाले चामर उन पर दुरायेंगे । १०७८ ।
पुव्विं ओखि माणुसेहिं संहिट्ठ- रोमकूवेहिं ।
पच्छा वहति सीयं असुरिंद सुरिंद नागिन्दा १०७९ ।
9
( पूर्वतः उत्क्षिप्ता (व्यूढा ) मानुषैः संहृष्टरोमकूपैः । पश्चात् वहन्ति सीतां असुरेन्द्र सुरेन्द्रनागेन्द्राः । )
,
4
भगवान महापद्म की उस पालकी को आगे की ओर से हर्षा - तिरेक के कारण रोमाञ्चित हुए मनुष्य और पीछे की ओर से असुरेन्द्र, सुरेन्द्र और नागेन्द्र वहन करेंगे । १०७
चलचवल कुंडलधरा, सच्छंद विउब्विया भरणधारी ।
देविंद दाणविंदा, बहंति सीयं जिणवरस्स | १०८० । (चल चपलकुण्डलधराः, स्वछन्द विकुर्वीत आभरणधारिणः । देवेन्द्र दानवेन्द्राः, वहन्ति सीतां जिनवरस्य । )
निरन्तर चलायमान रहने के कारण चंचल कुण्डलों को धारण करने काल े, वक्रिय लब्धि द्वारा यथेप्सित विनिर्मित आभरणों को धारण किये हुए देवेन्द्र तथा दानवेन्द्र तीर्थंकर प्रभु की पालको उठाते हैं । १०८०
वणसंडोव्य कुसुमिओ, पउमसरो वा जहा सरयकाले । सोहइ कुसुमभरेणं, इय गगणवलं सुर गणेहिं । १०८१ ।