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________________ तित्थोगाली पइन्नय ) [ ३२१ प्रतप्त स्वर्ण के समान वर्ण वाले भगवान् महापद्म अपने ज्येष्ठ पुत्र नलिनीकुमार को राज्य सम्हला कर मार्गशीषं कृष्णा दशमी के दिन - 1१०६६। (१०७० तथा १०७१ संख्याके द्वो गाथे प्रतौ न स्तः) [ स्पष्टीकरण:- इससे आगे की गाथा के आगे हमारे भण्डार की प्रति में १०७२ संख्या लिखी हुई है । हमें आशंका थी कि कहीं लिपिक द्वारा २ गाथायें छोड़ तो नहीं दी गई हैं पर आहोर स्थित श्री राजेन्द्रसूरी जी महाराज के भण्डार से उपलब्ध प्राचीन प्रति को देखने से हमारी वह आशंका निर्मूल सिद्ध हुई । इस गाथा के पश्चात् हमारे भण्डार की प्रति में जो गाथा उल्लिखित है वही गाथा श्रहोर भण्डार की प्रति पें भी है और उस पर गाथा संख्या अनुक्रमशः ठीक और सही है। वस्तुतः एक भी गाथा लिखने में छूटी नहीं है । ] पाईण गामिणीए, अभिणि विट्ठाए पोरिसि छायाए । विजएण मुहुत्तेणं, सो उत्तर फग्गुणी जोगे । १०७२। (प्राचीनगामिन्यां, अभिनिविष्टायां पौरुषी छायायाम् । विजयेन मुहूर्त्तेन, स उत्तरा फाल्गुनी योगे ।) चतुर्थ प्रहर की वेला में छाया जब पूर्व दिशा की ओर अभिनिविष्ट होगी, उस समय चन्द्र का उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ योग होने पर विजय मुहूत में - 1 १०७२। 2 चंदप्पभ्राय सीता, उवणीया जम्म मरणमुक्कस्स 1 आस च मल्लदामा, जल थलय दिव्व कुसुमेहिं । १०७३ | ( चन्द्रप्रभा च सीता, उपनीता जन्म-मरण मुक्तस्य । आसक्त मल्लदामा, जलस्थलैजं दिव्य- कुसुमैः ।) उन जन्म-मरण से विमुक्त होने वाले भगवान् महापद्म के लिए जल एवं स्थल-स्थल पर उत्पन्न हुए दिव्य पुष्पों एवं उनकी मालाओं से सर्वतः सुसज्जित चन्द्रप्रभा नाम की पालकी लाई जायगी । १०७३।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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