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[ तिस्थोगालो पइन्नय
(ततः ते बिलवासिनः नराम, दृष्ट्वा अन्नं महती समृद्धिम् । करिष्यन्ति इदं सर्व , सर्वेऽपि समागताः सन्तः ।)
तदनन्तर वे सभो बिलवासी मानव बिलों से बाहर आ एक स्थान पर एकत्रित हो अन्न और पृथ्वी की उस विशाल समृद्धि को देख कर सर्वसम्मत रूप में इस प्रकार का निर्णय करेंगे-- ६८६। जातं खु सुह विहारं , कुसुम समिळू इह भरहवासं। तो जो कुणिमं खाही, अम्हं सो वज्जणिज्जोउ ।९९० । (जातं खलु सुख विहारं , कुसुम समृद्धमिदं भरतवर्षम् । ततः यः कुणिमं खादिष्यति, अस्मामिः स वर्जनीयस्तु :)
यह भारतवर्ष कुसुम आदि से समृद्ध एवं सुखपूर्वक विचरण करने योग्य बन गया है। अतः भविष्य में यदि काई व्यक्ति मांस खायगा, तो वह हम लोगों से पृथक् बहिष्कृत कर ।दया जायेगा ।६६०। (नवसुवि वासेसेवं, भणियं वीरेण आयमे संतु । रायगिहे गुणसिलए, गोयममादीण सेसाणं ।) नवस्वपि वर्षेष्वेवं, भणितं वीरेण आगमे एतत्तु । राज गृहे गुणशीलके, गौतमादीन् शेषान् ९९१।
शेष ह क्षेत्रों में भी सब कुछ इसी प्रकार होगा" - यह भगवान महावीर ने राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में अपने गौतम आदि शिष्यों को कहा था।९६१। एवं कमेण पुणरवि, दससु वि वासेसु दुस्समा एसा । इगवीस सहस्सई, वासाणं वट्टए जाव ।९९२। (एवं क्रमेण पुनरपि, दशस्वपि वर्षेषु दुःषमा एषा। एकविंशति सहस्राणि, वर्षाणां वर्तने यावत् ।)
इस प्रकार क्रमशः २१,००० वर्ष की स्थिति वाला यह दु.षम नामक आरक दशों थोत्रों में पुनः प्रवर्तित होगा ।६६२।