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________________ तित्थोगाली पइन्नय ] . [ २७७ पुत्ता अम्मापियरो, अवमणंति कटयाइ भासंति । सुन्हा य जंतसमिया, सासूविय किण्हसप्पसमा ।९१४। (पुत्रा अम्बापितरौ, अवमन्यन्ते कटुकानि भाषन्ति । स्नुषा च यन्तृशमिता, श्वश्रपि च कृष्णसर्पसमा ।) पुत्र अपने माता-पिता का तिरस्कार करेंगे और उन्हें कटु वचन कहेंगे। पुत्रवधु जन्त्री (मोटे तार को पतले से पतला बना देने वाली छोटे बड़े अनेक छिद्रों वाली लोहे की पट्टो) के समान सास काली नागिन के समान होगी ।।१४।। सह पं [पु] सुकीलियाता, अणवरयं गुरुयनेह पडिबद्धा । मित्तदार हसिएहि लुभति वयंस सब्भासु ।९१५॥ (सहपांशुक्रीडितास्ताः अनवरतं गुरुकस्नेह प्रतिबद्धाः । मित्रदारहसितैः, लुभ्यन्ति वयस्य सभासु ।) बाल्यकाल में धूलि में साथ खेले हुए समवयस्क युवकों के साथ उस समय की कुल वधुएँ प्रगाढ़-स्नेह में प्राबद्ध रहेंगी। युवक भी अपने मित्र की पत्नी की मधुर मुस्कान से साथियों की पत्नियों में लुब्ध रहेंगे ६१५॥ हसितेहि जंपिएहिय, अच्छिविकारेहिं नट्ठलज्जातो । सविलास नियच्छेहि य, पहुवा सिक्खंति वेसाणं ९१६। हसितैः जत्पितैश्च, अक्षिविकारैर्नष्टलज्जाः । सविलास निजाक्षौश्च प्रभूता शिक्षयन्ति वेश्यानाम् ।) उस समय को कुलवधुएं निर्लज्ज हो हास्य, प्रेमालाप, भ्रूभङ्ग और सविलास कटाक्ष आदि वेश्याओं के बहुत से लक्षणों को सीखेंगी ।।१६। । सावग साविग हाणी, भावण तवसीलदाण परिहीणं । समणाणं समणीणं असंख डाइणि थेवेति ।९१७) (श्रावक श्राविकाहानिः, भावनातपः शील दानं परिहीनम् । श्रमणानां श्रमणीनां च, संघाटकानि स्तोकानि ।)
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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