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[ तित्योमाली पत्रक
२३८ ]
रायकुल सरिसभूते, सगडाल कुलम्मि एस संभूतो । गेह गओ चैत्र पुणो, निण्हातो सव्च सत्थेसु । ७७७ | (राजकुल सदृश भूते, शकटालकुले एषः सम्भूतः । गेह गतश्चैव पुनः, निष्णातः सर्वशास्त्रेषु 1 )
राजकुल के समान महान् शकडाल कुल में इसका ( स्थूलभद्र का) जन्म हुआ है। गृहस्थावस्था में ही यह सब शास्त्रों में निष्णात हो गया था । ७७७ |
कोसा नामं गणिया, समिद्धकोसा य विउल कोसा य । जीए घरे उवडो, (उचरिट्ठो) रति संविसेसम्म वेसम्म । ७७८ | (कोशा नामा गणिका, समृद्धकोशा च विपुलकोशा च । यस्था गृहे उपदिष्टः [उपरिष्ठः ] रति- सविशेषे वेश्मनि । )
यह अति समृद्ध एवं विपुल कोश की स्वामिनी कोशा नामक गणिका के - -- रति के प्रासाद से भी विशिष्ट भवन में यह रहा है ७७८
बारस वासाई उत्थो [उसिओ] कोसए घरम्मि सिरिघर समम्मि । सोऊण य पिउ मरणं, रण्णो वयणं नि गिज्झीय ७७९ । ( द्वादशवर्षान् च उक्षितः, कोशायाः गृहे श्रीगृह समे । श्रुत्वा च पितुः मरणं, राज्ञः वचनं च निगृह्य ।)
लक्ष्मी के प्रासाद के समान कोशा के घर में यह बारह वर्षों तक रहा । पिता के मरण को बात सुन कर तथा नंदराज के बुलाने के आदेश को प्राप्त कर- 1७७६|
तिमिच्छि सरिस वण्णं [?] कोसं आपुच्छए तयं धणियं । खिषं खु एह सामिय, अहयं न हु चाय ए सहं । ७८० । dea [१] सदृशवर्णा, कोशामापृच्छति तदा त्वरितम् । क्षिप्रं खलु एहि स्वामिन् अहं न खलु शक्नोमि सोढुम् 1)
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