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कण्ठ परम्परा से श्राये हुए इस
के समय तक कतिपय अंशों में विस्मृत और विकृत हो चुके थे ।
ग्रन्थ के पाठ उस ताड़पत्रीय प्रति में लेखन
प्रेस के व्यवस्थापक ने संशोधन हेतु मेरे पास प्रफ भेजने में असमर्थता प्रकट करते हुए प्रूफ देखने का उत्तरदायित्व अपने ऊपर ही ले लिया था । प्राकृत और संस्कृत के प्रूफ देखने में तो कठिनाई प्रवश्यंभावी है । इस कारण इस पुस्तक की छपाई में कतिपय अशुद्धियां रह गई हैं जो इसलिए क्षम्य हैं कि संस्कृत छाया धौर हिन्दी अनुवाद को देखने पर किंचित अशुद्धियाँ रह गई हैं उन्हें प्रत्येक पाठक स्वतः ही ठीक कर सकता है ।
गजेन्द्र सदन, लोटोनी (पाली)
दि० २५-१०-७५
मेरे स्वयं के प्रमाद, बुद्धि व्यामोह सम्भव है अशुद्धियां रह गई हों। मुझे सहृदय वे मुझे इसके लिये श्रवश्यमेव क्षमा कर देंगे ।
प्रथवा समयाभाव के कारण भी पाठकों पर पूर्ण विश्वास है कि
ठाकुर गर्जासह राठौड़ न्यायव्याकरण - तीर्थं