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तित्थोगाली पइन्नय ]
( ततश्चतुर्थी दशमीः, क्रमेण ज्ञानोत्पादा एते । वेलायां कस्यां ज्ञानं कस्योत्पन्नमिदं शृणुस्व ।)
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चतुर्थी ( २३ ) और दशमी (२४) --- ये तीर्थङ्करों के ज्ञानोत्पत्ति की क्रमबद्ध तिथियां हैं। अब यह सुनिये किस किस वेला (समय) में किन किन तीर्थङ्करों के केवलज्ञान की उत्पत्ति हुई ।४१७ |
[ स्पष्टीकरण --- चैत्य वृक्षों के जो नाम उपरिलिखित गाथा संख्या ४०० से ४१० में दिये गये हैं, वे समवायांग, सूत्रकृतांग सटीक एवं सत्तरियठारणा के एतद्विषयक उल्लेखों से पर्याप्तरूपेण साम्य रखते हैं । किन्तु गाथा संख्या २११ से गाथा संख्या ४१७ के पूर्वार्द्ध तक जो तीर्थङ्करों की कैवल्योपलब्धि के मास, पक्ष और दिन ( तिथियाँ) उल्लिखित हैं वे श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं की एतत्सम्बन्धी प्रचलित मान्यताओं से अधिकांशतः भिन्न हैं । इसमें उल्लिखित तीर्थंकरों की कैवल्योपलब्धि के आदि के एवं अत के दो मास, आदि के २ पक्ष तथा अन्त के ५ पक्ष और आदि की ७ तिथियां एवं अंत की ४ तिथियां प्रचलित मान्यता तथा 'सत्तरिसयठारणा' से मेल खाती हैं । हस्तलिखित पुस्तकों के विशेषज्ञ विद्वानों से यह तथ्य तो छुपा नहीं कि लिपिकों के प्रमाद से अनेक प्राचीन ग्रन्थों में अशुद्धियां उपलब्ध होती हैं पर उपरिलिखित ६-७ गाथाओं में आबद्ध तथ्यों की प्रचलित मान्यता के साथ इतनी अधिक भिन्नता प्राचीन काल में रहे किसी मान्यताभेद की ओर तो संकेत नहीं करती हैं, इस प्रश्न पर शोधार्थी एवं विद्वान् विचार कर प्रकाश डालेंगे तो अत्युत्तम रहेगा ।]
उसभ जिणस्स य सेज्जस, वासुपुज्जस्स मल्लिपासाणं । पुण्हे नापाओ, सेसाणं पच्छिम दिणं चि । ४१८ | ( ऋषभजिनस्य च श्रेयांस, वासुपूज्यस्य मल्लिपार्श्वयोः । पूर्वाहणं ज्ञानोत्पादाः शेषाणां पश्चिम दिने - इति । )
कैवल्योपलब्धि की वेला :---
तीर्थंकर ऋषभदेव, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्य, मल्लिनाथ और