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________________ कीर्तिकलाहिन्दीभाषाऽनुवादसहितम् २९. भावार्थ-पुराणों में ब्रह्माका वाहन हंस, महेश्वरका वाहन बलद तथा विष्णुका वाहन गरुड़ कहा गया है । (चूंकि एक देवके. अनेक वाहनोंका वर्णन नहीं है, किन्तु एक वाहनका ही वर्णन है।) तो एक मूर्ति तीन भाग कैसे हो सकते है ?। (अन्यथा प्रत्येक देवके पृथक् पृथक् वाहनोंका वर्णन ही असंगत हो जायगा । इसलिये तीनोंकी मूर्ति पृथक् ही है- ऐसा तात्पर्य है ) ॥ ३० ॥ पग्रहस्तो भवेद्ब्रह्मा शूलपाणि महेश्वरः। चक्रपाणि भवेद्विष्णुरेकमूर्तिः कथं भवेत् ? ॥ ३१ ॥ पदार्थ-ब्रह्मा ब्रह्मा नामके देव, पद्महस्तः पद्म-कमल हस्तहाथमें धारण करनेवाले, महेश्वरः महेश्वर नामके देव, शुलपाणिः =शूल-त्रिशूल पाणि-हाथमें धारण करनेवाले, भवेत् हैं, तथा, विष्णुः =विष्णुनामके देव, चक्रपाणिः चक्र-सुदर्शनचक्र पाणि-हाथमें धारण करनेवाले, भवेत् हैं । तो, एकमूर्तिः एक मूर्ति, कथमकैसे, भवेत् हो सकते है ? ॥ ३१॥ भावार्थ-पुराणों में ब्रह्मा हाथमें सदा कमल धारण करनेवाले महेश्वर हाथमें सदा त्रिशूल धारण करनेवाले, तथा विष्णु हाथमें “सदा सुदर्शन चक्र धारण करनेवाले कहे गये हैं। तो एकमूर्ति कैसे हो सकते है ? (पद्महस्त कहनेसे केवल ब्रह्माका, शूलपाणि कहनेसे केवल महेश्वरका तथा चक्रपाणि शब्दसे केवल विष्णुका ही बोध होता है। यदि एकमूर्ति हो तो ब्रह्माको चक्रपाणि, महेश्वरको पद्महस्त तथा विष्णुको शूलपाणि कहा जासकता है। किन्तु ऐसा
SR No.002450
Book TitleStotratrayi Saklarhat Stotra Virjin Stotra Mahadeo Stotra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorKirtichandravijay, Prabodhchandravijay
PublisherBhailalbhai Ambalal Petladwala
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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