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कीर्तिकलाहिन्दीभाषाऽनुवादसहितम्
. २७.
नहीं होता। इसलिये लांछन भिन्न होनेसे उक्त तीनों देव एकमूर्ति नहीं हो सकते, किन्तु भिन्न मूर्ति ही हैं। ऐसी स्थितिमें एक मूर्ति तीन भाग कहना अत्यन्त अयुक्त है ॥ २७ ॥
चतुर्मुखो भवेद्ब्रह्मा त्रिनेत्रोऽथ महेश्वरः।।
चतुर्भुजो भवेद्विष्णु रेकमूर्तिः कथं भवेत् ? ॥ २८ ॥ __पदार्थ-ब्रह्मा ब्रह्मानाम के देव, चतुर्मुख: चारमुखवाले, भवेत् =हैं, अथ तथा, महेश्वरः महेश्वर नामके देव, त्रिनेत्रः तीन नेत्र वाले हैं, विष्णुः विष्णु नाम के देव, चतुर्भुजः चार भुज-बाहुवाले, भवेत् हैं। तो, एकमूर्तिः एक मूर्ति, कथम् कैसे, भवेत् हो सकते हैं ? ॥ २८ ॥
. भावार्थ-पुराणोंमें ब्रह्मा चतुर्मुख कहे गये हैं, ( किन्तु तीन नेत्रवाले नहीं ।) तथा महेश्वर त्रिनेत्र कहे गये हैं, (किन्तु चतुर्मुख नहीं।) विष्णु चतुर्भुज कहे गये हैं, (किन्तु चतुर्मुख या त्रिनेत्र नहीं ।) तो एक मूर्ति तीन भाग कैसे हो सकते है ? । यदि मूर्ति एक माना जाय तो विष्णुकोभी त्रिनेत्र तथा चतुर्मुख, एवं महेश्वरकोभी चतुर्मुख तथा चतुर्भुज तथा ब्रह्माकोभी त्रिनेत्र तथा चतुर्भुज कहा जाता। किन्तु ऐसा नहीं हैं, चतुर्भुजसे विष्णु तथा त्रिनेत्रसे केवल महेश्वर तथा चतुर्मुखसे केवल ब्रह्मा ही समझे जाते है। इसलिये एक मूर्ति तीन भाग नहीं, किन्तु तीनों पृथक् पृथक् मूर्ति ही हैं ॥ २८ ॥