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कीर्तिकलाहिन्दीभाषाऽनुवादसहितम्
होनेसे अन्यकी अपेक्षासे उत्कृष्ट ऐसी दया तथा, महान् - असाधारण, दम · इन्द्रियमनोनिग्रह, एवं महान् - निर्विकल्पक होनेसे सर्वोत्तम, ध्यान - शुक्लध्यान हैं, सः वह देव, महादेवः महादेव, उच्यते-कहे जाते हैं ॥ ३ ॥
भावार्थ---- जिस देवका लोक तथा अलोक - दोनों के जानने वाला ऐसा महान् ज्ञान है, अर्थात् जो देव केवलज्ञानी हैं, अथवा जिस देवका महान् ज्ञान लोक तथा अलोक दोनोंका प्रकाशक है। तथा जिस देवकी दया, दम तथा ध्यान महान् हैं, अर्थात् जिस देवकी दया सर्वजीवों के प्रति है, दम कभी भंग नहीं होनेके कारण असाधारण है, एवं ध्यान निर्विकल्पसमाधिरूप शुक्लध्यान है, वह देव महादेव कहे जाते हैं। (अन्य तीथिकों के महादेव शब्दसे ही महादेव हैं। क्यों कि वे केवलज्ञानी नहीं है, तथा सृष्टिका संहार करने के कारण उनकी दया महान् नहीं है, उनका दमभी उनके परिग्रही होनेके कारण महान् नहीं है, तथा ध्यान भी सैद्र होने के कारण महान् नहीं है - यह तात्पर्य है)॥३॥
महान्तस्तस्करा ये तु तिष्ठन्तः स्वशरीरके ।
निर्जिता येन देवेन महादेवः स उच्यते ॥ ४ ॥ ___ पदार्थ-स्वशरीरके अपने शरीरमें, तु-हीं, ये-जो, तिष्ठन्तः=रहे हुए, रहनेवाले, महान्त: बहुत बड़े, तस्करा: चोर हैं, वह, येन=जिस, देवेन-देवसे, निर्जिता:-जीते गये हैं, सः= वह देवहीं, महादेव महादेव, उच्यते-कहे जाते हैं ॥ ४ ॥