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कीर्तिकलाहिन्दीभाषाऽनुवादसहितम्
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पदार्थ – विमलस्वामिन: - जिनेश्वर श्रीविमलनाथकी, कतकक्षोदसोदराः = कतक कतकनाम के वृक्षके फल, क्षोद- चूर्ण, सोदरसमान कतक के चूर्ण के समान, त्रिजगच्चेतोजलनैर्मल्य हेतवः = त्रिजगत् - तीनों लोक, चेतस् - मन, जल, नैर्मल्य - निर्मलता. शुद्धि, हेतु कारण, करनेवाले। तीनों लोकों के प्राणियों के चित्तरूपी जल को शुद्ध करनेवाली, वाचः = उपदेशवाणी, प्रवचन, जयन्ति = सभी अन्य वाणियों से अधिक महत्त्वकी हैं ॥ १५ ॥
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भावार्थ - (जैसे कतक के चूर्ण डालने से पानी स्वच्छ हो जाता है, उसप्रकार हीं जिनेश्वरकी वाणीसे चित्तशुद्धि होती है चित्तके सारे दोष दूर हो जाते हैं । इसलिये ) जिनेश्वर श्री विमलस्वामीकी, कतकके चूर्ण के समान तीनों लोकोंके प्राणियों के चित्तरूपी जलको शुद्ध करनेवाली वाणी - उपदेश अन्य सभी वाणियों से अधिक महत्त्व - वाली है । (यहां - जो वाणी चित्तशुद्धि में सहायक हो, वही सर्वश्रेष्ठ है - ऐसा भाव है ) ॥ १५ ॥
स्वयम्भूरमणस्पर्धिकरुणारसवारिणा ।
अनन्तजिदनन्तां वः प्रयच्छतु सुखश्रियम् ॥ १६॥
पदार्थ - अनन्तजित् - जिनेश्वर श्री अनन्त जित्स्वामी, स्वयम्भूरमणस्पर्धि करुणारसवारिणा = स्वयम्भूरमण - स्वयम्भूरमण नामके अन्तिमसमुद्र, स्पर्धि - स्पर्धा करनेवाले - होड़ करनेवाले, करुणारसकरुणारूपी रस, वारि - पानी, अत्यधिक होने के करण स्वयम्भूरमण नाम के अन्तिम एवं अन्य सभी सागरों से विशाल समुद्र के साथ भी
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