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॥ अहम् ॥ श्रीविजय-नेमि-विज्ञान-कस्तूर-सरिसद्गुरुभ्यो नमः । कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्राचार्यविरचितं
॥ सकलाऽर्हत्स्तोत्रम् ॥ पन्यासश्रीकीर्तिचन्द्रविजयगणिविरचितकीर्तिकलाहिन्दीभाषाऽनुवादसहितम् ।.
__ कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र नामके महाप्रबन्धका प्रारम्भ करते हुए - उक्त महाप्रबन्धकी निर्विघ्न समाप्ति हो - इस कामनासे मंगलाचरण रूपमें सकलार्हत्स्तोत्रकी रचना की थी। जिसमें चौवीस तीर्थंकरोंकी स्तुति करते हुए आदिमें आर्हन्त्य - तीर्थकरत्व - तीर्थकरके असाधारणभाव - तीर्थंकरपनकी स्तुति करते हैं- .
सकलाऽहत्प्रतिष्ठानमधिष्ठानं शिवश्रियः। भूर्भुवः स्वस्त्रयीशानमार्हन्त्यं प्रणिदध्महे ॥१॥
पदार्थ-सकलाहत्प्रतिष्ठानम् सकल - सर्व, अर्हत् - तीर्थकर, प्रतिष्ठा = पूजाके निमित्तभूत । सकलतीर्थंकरोंकी पूजाका हेतुभूत - जिसके होनेसे तीर्थकर पूजित होते हैं, वह असाधारण