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________________ ( १९८) जैन जाति महोदय प्रकरण छट्ठा. पर हुक्म चलाया ही करती है " अमुक कपडा कोर किनारी लाओ अमुक गहना कराओ " पर यह खबर नहीं है कि हमारा पति सुखी है या दुःखी इस वर्ष में पैदास है या नहीं विदेश में जा कर के वहां किन मुसिबतों से पैसा पैदा करते हैं ? . बालपोषण-आज कल की अपढित औरतो बालपोषण की रीति तो बिल्कुल ही भूल बैठी है उन के स्वास्थ्य आरोग्यता की तो उन को पर्वाह ही नहीं है कहां तो समय पर खान पान कहां आब हवा कहां उन के शुद्ध वस कपड़े सास बहू के झगड़ा और मार बच्चोंपर पडती है पती पत्नी के क्लेश और मार बच्चोंपर पडती है इतना ही नहीं पर वे अपठित माताएं उन बच्चों का प्रनुचित प्यार कर के ऐसे खराब संस्कार डाल देती है कि वे जन्म भर के लिए नहीं मिट सक्ते हैं, इस कारण से वह सन्तान कायर कमजोर डरपोक हुआ करती हैं। हुन्नर-हुनरकला से तो हमारी महिला समाज हाथ ही धो बैठी हैं अपने पहिनने के कपडे तक भी मजूरी से सिलाये जाते हैं इतना ही नहीं पर बालबच्चों के अंगरखा टोपी बनाना हो तो भी दर्जी की जरूरत पड़ती हैं तो दूसरे कामों के लिए तो कइना ही क्या सिर्फ साबन की बटियों से शरीर धोने का हुनर उन के हाथ रहा है। जैसे स्त्री समाज में अनेक रोग प्रवेश हुए हैं वैसे पुरुषों में भी कम नहीं है वे भी फैसन के गुलाम बन अनेक फजूल खर्चा
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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