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(१२६ ) जैन जाति महोदय प्रकरण छट्ठा. नहीं कर सक्ते हैं वह कार्य स्त्री समाज बडी पाशानी से कर सकी है पठित नियों प्राय व्यय के हिसाबपर गृह खर्चा अर्थात् उस की सुव्यवस्था से घर को हरा भरा रखती है पतीदेव की सेवा कर उस के दिल को पसन्द और शरीर के स्वास्थ्य को अच्छा रख सक्ती है वीर सन्तान को जन्म दे कर उन का अच्छी तरह पालन पोषण कर कुटुम्ब वृक्ष को खूब फलीभूत बना सक्ती है पतिदेव को गृह चिन्ता से दूर कर सक्ती है साधु अतिथियों और महमानों का यथाविधी सत्कार कर शोभा को बढा सक्ती है गृहकार्य से निवृति पाकर पति के धर्म कार्य में मदद पहुंचा सक्ती है पति के माता पिता की सेवा सुश्रुषा कर उन का शुभाशीर्वाद प्राप्त कर सक्ती है इत्यादि । पर यह कब बन सकता है कि पुरुषों की भान्ति स्त्रियों को भी उन की आवश्यकतानुसार शिक्षा दी जाय उन के अंदर बचपन से ही सुन्दर संस्कार डाले जाय तब ही वे कुलीन महिलाएं कल्पलता कहला सक्ती है उन का ही दम्पति जीवन शान्ति पूर्वक गुजर सका है।
आज स्वार्यप्रिय पुरुषोंने यह सोच रङ्गखा है कि लड़कों को पढाना तो ठीक है कारण वे तमाम उम्मर कमा कर लाएंगे
और सेवा चाकरी भी करेंगे पर लड़कियों को पढाने से क्या फायदा है कारण वे तो कल पराए घर अर्थात् अपने सुसराल जायगी । पर उन भदूरदर्शी लोगोंने यह नहीं सोचा कि जैसे माप अपदित कन्या को सासरे भेजेंगे वैसे भाप के वहां भी तो