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________________ (१०२) जैन जाति महोदय प्रकरण छट्ठा. लिखाया हो इतना ही नहीं पर अब तो हमारे षट्काय प्रतिपालक मुनिराजों के चरण कमल भी अदालतों को पवित्र बना रहे हैं। अगर हमारे समाज नेता इस और लक्ष देकर पूर्व की भान्ति आपस के झगडे पंचायतियों द्वारा न्यायपूर्वक निपट लें, तो ममाज के प्रतिवर्ष हजारों लाखों रूपये व्यर्थ जाते हुए रूक जाय, अगर उन धनवानों के घरों में धन रखने के लिये जगह न. हो तो समाज के ऐसे २ कई क्षेत्र है कि जिन को द्रव्य की पूर्ण आवश्यकता है; वहां लगाकर के पुन्य हासिल करें। अगर कोई सवाल करेगा कि धनाढ्यों के देखा देखी साधारण आदमी पर्वोक्त खर्च क्यों करते है क्या कोई उनसे जबरन करवाता है ? उत्तर में कहना पडता है कि वे धनाढ्यों के बराबर खर्चा करने में खुश नहीं है, पर ऐसा नहीं करने पर धनाढ्य उनकी इज्जत को हल्की समझ कर के उनके लडके लडकियां के सगपन में बाधा डालते हैं इस भय के मारे उन साधा रण मनुष्यों को भी देखादेखी मरना पडता है। अगर आज भी हमारे धनाढ्य वर्तमान जमाने में जैन समाज की गिरी हालत, उनकी आय व्यय और व्यापार की हालत पर गहरी दृष्टि से विचार कर साधारण मनुष्यों पर वात्सल्यता भाव लाकर पूर्वोक्त विवाह सादी काज करीयावर गहने कपडे, बन्दोले, बेण्डबाजे आदि २ कार्यों में पहिले अपने घरों से फिजुल खर्चे को हटा करके पूर्व की माफिक साधारण
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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