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विवाह. पापाचार होते हो, यह देश का मसि सातसमें सी बाब इसमें भापर्य ही क्या ?
जैसे बाल विवाह का सौभाग्य बनावों को मिल रहा है वैसे ही वृद्ध विवाह के प्रचार का यश मी उन दौलतमंद भाग्य. शालियों को ही आभारी है। धन मनुष्य को कैसे२ नाच नचाया करता है कैसे २ कुकर्मों में प्रवृति कर देता है उस का उदाहरण का चित्र आपके सामने मोजूद है, धनाढय अपनी कास्तित वासनाओं को पूर्ण करने में कैसे जी जानसे लगे हुए हैं अपनी रु इच्छा को पूर्ण करने के लिये तो उन्होंने कन्याव्यापार का बजार खूब गर्म कर दिया अर्थात् सो डिग्री तक पहुंचा दिया ९-१० वर्ष की कन्याओं को ४०-५० हजार से खरीदनेवाले धनाढय कसाई म्यापारी तैयार ही मिलते हैं। धन के बलसे, दो चार नियों का जीवन नष्ट कर दिया हो फिर भी कितनी उम्मर क्यों न हो, श्वेतवाल मृत्यु का संदेश भले ही देते हो, जरित शरीर में चलने फिरने की मी शक्ती नहीं हो तब भी बालोंपर सिजाव लगातार इन्द्रियों के गुलाम नरपिशाच अपनी मोगेवा पूर्ण करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते है। उनके दुष्ट हरबमें ऐसे सहिचार कहाँसे आवे कि मैं सन्यास्तावामी बनने के समय गृहस्वामी से बनता हुं ? जिनमवोध बालिकानों परहन भाशा तन्तुषों को पुख पांध रहे हैं जिन को हम भोग की सामग्री बना रहे हैं वे परख पत्लि कहलाई मा सकी है या पुत्री ? प्रकृतिक नियमानुसार तत्व दृष्टिसे देखा जाय तो वह बालापुत्री समान हीरे उसके साथ